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एस्ट्रो धर्म :



भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म में सूर्य को भगवान का दर्जा मिला है। ग्रह विज्ञान के हिसाब से भी सूर्य को सभी ग्रहों से श्रेष्ठ माना गया है। सूर्य ऊर्जा का स्रोत है और अन्‍य ग्रह इसकी परिक्रमा करते हैं। वे इसकी रोशनी प्राप्त करते हैं। सनातन धर्म नें भी इसके महत्व को समझा है और इसिलिए सबसे श्रेष्ठ मानते हुए सूर्य देव की पूजा को कहा गया है। सूर्य को जल अर्पित जाता है। सूर्य को जल अर्पण करने के पीछे धार्मिक कारणों के साथ साथ कुछ वैज्ञानिक तथ्‍य हैं।
  • जिन लोगो की कुंडली मे सूर्य कमजोर होता है या जिनमें आत्मविश्वास की कमी होती है या फिर जो निराशावादी होते है और जिन्हें घर-परिवार में मान-सम्मान की अभिलाषा होती है उनके लिए सूर्य को जल चढाना महत्वपूर्ण माना गया है।
  • सूर्य की किरणों में सात रगों का समावेश होता है जो रंग हम कृत्रिम रोशनी में नही देख पाते वे सभी सूर्य की रोशनी में सपष्ट दिखाई देते हैं। सूर्य की रोशनी के कारण ही हम रंगों की सही पहचान करने में सक्षम होते हैं।
  • माना जाता है कि सुबह जब कोई व्यक्ति सूर्य को जल चढ़ाता है तो सूर्य से निकलने वाली किरणें उसको स्वास्थ्य लाभ देती हैं। सुबह के समय सूरज की जो किरणें निकलती हैं वे शरीर में होने वाले रंगों के असंतुलन को सही करती हैं। सूरज की किरणों में सात रंगों का समावेश होता है। यह रंग 'रंगो के विज्ञान' पर काम करते हैं। माना जाता है कि सुबह के समय सूर्य को जल चढ़ाते समय इन किरणों के प्रभाव से रंग संतुलित हो जाते हैं और साथ ही साथ शरीर में प्रतिरोधात्मक शक्ति बढ़ती है।
  • धार्मिक दृष्टिकोण से देखें तो सूर्य देव को आत्मा का कारक माना गया है। प्रात:काल सूर्य देव के दर्शन से मन को बेहतर कार्य करने की प्रेरणा मिलती है। यह शरीर में स्फूर्ति लाता है। सूर्य प्रकाश का सबसे बड़ा स्रोत है और प्रकाश को सनातन धर्म में सकारात्मक भावों का प्रतीक माना गया है। दुख, तकलीफ और परेशानियों को रात या अंधेरे से जोड़ा गया है। जब सूर्य का उदय होता है तो अंधकार गायब होने लगता है। अर्थात सूर्य के आने से सभी नकारात्मक उर्जा नष्ट हो जाती हैं। यही वजह है सूर्य को श्रेष्ठ ईश्वर का दर्जा दिया गया है।
  • सूर्य को जल चढाने के लिए सुबह सूर्योदय से पहले उठकर स्नानादि करके तांबे के लोटे से सूर्य को जल अर्पित करने का विधान है। इस विधि के दौरान जल की धारा में से उगते सूरज को देखना चाहिए इससे धातु और सूर्य कि किरणो का असर आपकी दृष्टि के साथ-साथ आपके मन पर भी पडेगा और आपको सकारात्मक उर्जा का आभास होता रहेगा। सूर्य को जल अर्पित करते वक्त इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए की अर्घ्‍य किया हुआ जल बेकार ना जाए। वो जल किसी वनस्पति में गिरे तो आपको सौभाग्य की प्राप्ति होगी। इसके साथ साथ जल चढाते वक्त सूर्य मंत्र ऊँ सूर्याय नम: का जाप करते रहना चाहिए। सूर्य को जल चढाने का सही वक्त सूर्योदय होता है।
एस्ट्रो धर्म :




शनिदेव को ज्योतिष में न्याय का देवता माना जाता है। न्यायकारी होने के कारण उनके दंड के विधान के चलते हर कोई इनसे खौफ खाता है। ज्योतिष में जहां शनि को क्रूर ग्रह की संज्ञा दी गई है। वहीं जानकारों का कहना है कि शनि केवल आपके कर्मों के आधार पर ही फल देते हैं, ऐसे में यदि आपके द्वारा गलत कर्म किए गए हैं तो आपको न्याय के विधान के तहत दंड मिलेगा। वहीं यदि आपके कर्म काफी अच्छे रहे हैं तो शनिदेव इसका फल पुरस्कार के रूप में भी देते हैं।
शनिदेव की निगाह को हमेशा घातक माना जाता है, ऐसे में ही एक कथा के अनुसार द्वापर युग में जब श्रीकृष्ण ने घरती पर अवतरण लिया तो सभी देव उनके बाल रूप के दर्शन के लिए नंद गांव में आए। ऐसे में एक बार शनि भी श्रीकृष्ण से मिलने आए तो मान्यता है कि श्रीकृष्ण ने उन्हें नंद गांव से करीब 2 किमी दूर ही कोकिलावन में रोक दिया और कहा कि समय आने पर मैं स्वयं तुमसे मिलने आउंगा।
कृष्‍ण ने कहा कि वे नंद गांव के निकट वन में ही तपस्‍या करें, वे वहीं दर्शन देने प्रकट होंगे। तब शनि ने इस स्‍थान पर पर तप किया और प्रसन्‍न श्रीकृष्‍ण ने कोयल रूप में उन्‍हें दर्शन दिए।
इसीलिए इस स्‍थान का नाम कोकिला वन पड़ा। साथ ही कृष्‍ण ने शनिदेव को आर्शीवाद दिया कि वे वहीं विराजमान हों और इस स्‍थान पर जो उनके दर्शन करेगा उस पर शनि की दृष्‍टि वक्र नहीं होगी, बल्‍की उनकी इच्‍छापूर्ति होगी।
मिलता है इच्छित वरदान
श्रीकृष्‍ण ने स्‍वयं भी वहीं पास में राधा के साथ मौजूद रहने का वादा किया। यही स्थान आगे चल कर शनिदेव का प्रसिद्ध धाम बन गया, जो आज शनिदेव के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। जहां हर शनिवार को हजारों की संख्या में भक्त शनिदेव के दर्शन करने व इच्‍छित वरदान मांगने आते हैं।
दुनिया के प्राचीन शनि मंदिरों में से एक
जानकारों के अनुसार उत्तर प्रदेश में कृष्‍ण के ब्रजमंडल में शनिदेव का एक सिद्ध स्‍थान कोसीकलां गांव के पास कोकिलावन के नाम से प्रसिद्ध है। यह स्‍थान कोसी से लगभग 6 किलोमीटर दूर है और नंद गांव से करीब 2 किमी की दूरी पर है। यह शनि मंदिर दुनिया के प्राचीनतक शनि मंदिरों में से एक माना जाता है। यहां शनिदेव दंड देने की जगह पर इच्‍छित वरदान देने वाले की भूमिका में आ जाते हैं। कहा जाता है यहां मांगी मुराद शीघ्र पूरी होती है।
शनि को नंद बाबा ने रोका...
इस मंदिर से जुड़ी एक अन्य कथा के अनुसार कहते हैं कि भगवान कृष्ण के समय से स्थापित इस मंदिर को स्‍वयं कान्‍हा के वरदान के बाद यहां स्‍थान मिला था। इस कथा के अनुसार जब कृष्‍ण जन्‍म पर अन्‍य देवताओं के साथ उनके बाल रूप के दर्शन के लिए अन्‍य देवताओं के साथ गए शनि को नंद बाबा ने रोक दिया, क्‍योंकि वे उनकी वक्र दृष्‍टि से भयभीत थे।
तब दुखी शनि को सांत्‍वना देने के लिए कृष्‍ण ने संदेश दिया कि वे नंद गांव के निकट वन में उनकी तपस्‍या करें, वे वहीं दर्शन देने प्रकट होंगे। तब शनि ने इस स्‍थान पर पर तप किया और प्रसन्‍न श्रीकृष्‍ण ने कोयल रूप में उन्‍हें दर्शन दिए। इसीलिए इस स्‍थान का नाम कोकिला वन पड़ा। साथ ही कृष्‍ण ने शनिदेव को आर्शीवाद दिया कि वे वहीं विराजमान हों और इस स्‍थान पर जो उनके दर्शन करेगा उस पर शनि की दृष्‍टि वक्र नहीं होगी, बल्‍की उनकी इच्‍छापूर्ति होगी। कृष्‍ण ने स्‍वयं भी वहीं पास में राधा के साथ मौजूद रहने का वादा किया।
मिलती है शनि की कृपा
तब से शनि धाम के बाईं ओर कृष्‍ण, राधा जी के साथ विराजमान हैं और भक्त किसी भी प्रकार की परेशानी लेकर जब यहां आते हैं, तो उनकी इच्‍छा शनि पूरी करते हैं। मान्‍यता है कि यहां राजा दशरथ द्वारा लिखा शनि स्तोत्र पढ़ते हुए परिक्रमा करने से शनि की कृपा प्राप्त होती है।
ऐसे पहुंचे शनि के धाम...
मथुरा-दिल्ली नेशनल हाइवे पर मथुरा से 21 किलोमीटर दूर कोसीकलां गांव पड़ता है। यहां से एक रास्‍ता नंदगांव तक आता है, वहीं से कोकिला वन शुरू हो जाता है।
एस्ट्रो धर्म:
Shani Jayanti (Shani Birthday) 2020: Shani Birthday Know Shani ...
इस साल 2020 में शनि देव की जयंती का पर्व 22 मई को मनाया जाएगा। शनि जयंती के दिन शनि देव की पूजा अर्चना के श्रद्धापूर्वक शनि देव की इस आरती का गायन करने से प्रसन्न हो जाते हैं। जानें शनि जंयती के दिन शनि देव की आरती और उसे करने का विधान।
शनि देव की आरती करते समय इतना ध्यान रखें-
बिना पूजा उपासना, मंत्र जाप, प्रार्थना या भजन के सिर्फ आरती नहीं की जा सकती। हमेशा किसी पूजा या प्रार्थना की समाप्ति पर ही आरती करना श्रेष्ठ होता है। आरती की थाल में कपूर या घी के दीपक, दोनों से ही ज्योति प्रज्ज्वलित कर आरती की जा सकती है। अगर मंदिर में दीपक से आरती करें तो यह पंचमुखी दीपक होना चाहिए।
ऐसे करें शनि देव की आरती
आरती की थाल को इस प्रकार घुमाएं कि ॐ की आकृति बन सके। आरती को भगवान के चरणों में चार बार, नाभि में दो बार, मुख पर एक बार और सम्पूर्ण शरीर पर सात बार घुमाना चाहिए। आरती से ऊर्जा लेते समय सर ढंका रखें। दोनों हाथों को ज्योति के ऊपर घुमाकर नेत्रों पर और सर के मध्य भाग पर लगायें। आरती लेने के बाद कम से कम पांच मिनट तक जल का स्पर्श नहीं करना चाहिए। आरती की थाल में दक्षिणा या अक्षत जरूर डालना चाहिए। कहा जाता है कि शनिदेव की आरती और भजनों का श्रद्धा पूर्वक गायन करने से शनि देव व्यक्ति की हर तरह की विपत्तियों से रक्षा करते हैं।
।। आरती शनि देव की ।।
1- जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी।
सूरज के पुत्र प्रभु छाया महतारी॥
जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी॥
श्याम अंग वक्र-दृष्टि चतुर्भुजा धारी।

2- निलाम्बर धार नाथ गज की असवारी॥
जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी॥
क्रीट मुकुट शीश सहज दिपत है लिलारी।

3- मुक्तन की माल गले शोभित बलिहारी॥
जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी॥
मोदक और मिष्ठान चढ़े, चढ़ती पान सुपारी।

4- लोहा, तिल, तेल, उड़द महिषी है अति प्यारी॥
जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी॥
देव दनुज ऋषि मुनि सुमिरत नर नारी।
विश्वनाथ धरत ध्यान हम हैं शरण तुम्हारी॥
जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी॥
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एस्ट्रो धर्म :

Hanuman Jayanti 2020: Wishes, messages, SMS, quotes, Facebook and ...


शनिवार के दिन जिस भी रूप में पवन पुत्र महाबली हनुमान जी की पूजा आराधना की जाती है वें प्रसन्न हो जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि जिसी किसी भक्त के उपर श्री हनुमान जी की कृपा दृष्टि पड़ जाएं उनके जीवन के सारे अभाव, कष्ट और दुख दूर हो जाते हैं। अगर बजरंगबली की कृपा तुरंत पाना चाहते हैं तो शनिवार के दिन दोपहर 3 बजे से शाम 7 बजे के बीच अपने घर पर ही ये चमत्कारी उपाय जरूर करें।
1- अगर कोई किसी बड़ी समस्या से घिरा हुआ है तो शनिवार के दिन दोपहर 3 बजे से शाम के 7 बजे के बीच श्री हनुमान जी के इस सिद्ध चमत्कारी मंत्र का 1100 बार हनुमान जी के सामने सुगंधित धुप जलाकर मंत्र का जप करें।
मंत्र- ।। ॐ महाबलाय वीराय चिरंजिवीन उद्दते। हारिणे वज्र देहाय चोलंग्घितमहाव्यये।।
जब उपरोक्त मंत्र का जप पूरा हो जाये तो उसके बाद 7 बार श्री हनुमान चालीसा का पाठ भी करें।
2- अगर किसी को बार बार किसी भी चीज से डर लगता हो तो शनिवार के दिन दोपहर 3 बजे से शाम के 7 बजे के बीच अपने घर में ही पूर्व दिशा की ओर में मुख करके इस मंत्र का 700 बार का जप करें।
मंत्र -।। ॐ हं हनुमंते नम: ।।
3- समस्त संकटों से मुक्ति के लिए शनिवार के दिन दोपहर 3 बजे से शाम के 7 बजे के बीच किसी अपने घर के पूजा स्थल में लाल ऊनी आसन पर बैठकर नीचे दिये हनुमान जी के सिद्ध मंत्र का 551 बार जप करने के बाद 7 बार श्री हनुमान चालीसा का पाठ करें।
मंत्र- ।। ॐ नमो हनुमते रूद्रावताराय सर्वशत्रुसंहारणाय सर्वरोग हराय सर्ववशीकरणाय रामदूताय स्वाहा।।
4- शनिवार के दिन दोपहर 3 बजे से शाम के 7 बजे के बीच शत्रु या कोई असाध्य रोग से परेशान हो रहे हो तो नीचे दिये मंत्र का जप 108 बार करने के बाद श्री हनुमान चालीसा का पाठ करें। शीघ्र ही शत्रुओं एवं रोग से मुक्ति मिलेगी।
मंत्र- ।। ॐ नमो हनुमते रूद्रावताराय सर्वशत्रुसंहारणाय सर्वरोग हराय सर्ववशीकरणाय रामदूताय स्वाहा ।।


ॐ जय श्री श्याम हरे बाबा जय श्री श्याम हरे |
खाटू धाम विराजत अनुपम रूप धरे॥ ॐ जय श्री श्याम हरे....

रत्न जड़ित सिंहासन सिर पर चंवर ढुले |
तन केशरिया बागों कुण्डल श्रवण पडे॥ ॐ जय श्री श्याम हरे....

गल पुष्पों की माला सिर पर मुकुट धरे |
खेवत धूप अग्नि पर दिपक ज्योती जले॥ ॐ जय श्री श्याम हरे....

मोदक खीर चुरमा सुवरण थाल भरें |
सेवक भोग लगावत सेवा नित्य करें॥ ॐ जय श्री श्याम हरे....

झांझ कटोरा और घसियावल शंख मृंदग धरे |
भक्त आरती गावे जय जयकार करें॥ ॐ जय श्री श्याम हरे....

जो ध्यावे फल पावे सब दुःख से उबरे |
सेवक जन निज मुख से श्री श्याम श्याम उचरें॥ ॐ जय श्री श्याम हरे....

श्री श्याम बिहारी जी की आरती जो कोई नर गावे |
कहत मनोहर स्वामी मनवांछित फल पावें॥ ॐ जय श्री श्याम हरे....

ॐ जय श्री श्याम हरे बाबा जय श्री श्याम हरे |
निज भक्तों के तुम ने पूर्ण काज करें॥ ॐ जय श्री श्याम हरे....

ॐ जय श्री श्याम हरे बाबा जय श्री श्याम हरे |
खाटू धाम विराजत अनुपम रूप धरे॥ ॐ जय श्री श्याम हरे....



















निश्चय प्रेम प्रतीत ते, विनय करें सनमान ।
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्घ करैं हनुमान ॥
जय हनुमंत संत हितकारी। सुन लीजै प्रभु अरज हमारी॥
जन के काज बिलंब न कीजै। आतुर दौरि महा सुख दीजै॥
जैसे कूदि सिंधु महिपारा। सुरसा बदन पैठि बिस्तारा॥
आगे जाय लंकिनी रोका। मारेहु लात गई सुरलोका॥
जाय बिभीषन को सुख दीन्हा। सीता निरखि परमपद लीन्हा॥
बाग उजारि सिंधु महँ बोरा। अति आतुर जमकातर तोरा॥
अक्षय कुमार मारि संहारा। लूम लपेटि लंक को जारा॥
लाह समान लंक जरि गई। जय जय धुनि सुरपुर नभ भई॥
अब बिलंब केहि कारन स्वामी। कृपा करहु उर अंतरयामी॥
जय जय लखन प्रान के दाता। आतुर ह्वै दुख करहु निपाता॥
जै हनुमान जयति बल-सागर। सुर-समूह-समरथ भट-नागर॥
ॐ हनु हनु हनु हनुमंत हठीले। बैरिहि मारु बज्र की कीले॥
ॐ ह्नीं ह्नीं ह्नीं हनुमंत कपीसा। ॐ हुं हुं हुं हनु अरि उर सीसा॥
जय अंजनि कुमार बलवंता। शंकरसुवन बीर हनुमंता॥
बदन कराल काल-कुल-घालक। राम सहाय सदा प्रतिपालक॥
भूत, प्रेत, पिसाच निसाचर। अगिन बेताल काल मारी मर॥
इन्हें मारु, तोहि सपथ राम की। राखु नाथ मरजाद नाम की॥
सत्य होहु हरि सपथ पाइ कै। राम दूत धरु मारु धाइ कै॥
जय जय जय हनुमंत अगाधा। दुख पावत जन केहि अपराधा॥
पूजा जप तप नेम अचारा। नहिं जानत कछु दास तुम्हारा॥
बन उपबन मग गिरि गृह माहीं। तुम्हरे बल हौं डरपत नाहीं॥
जनकसुता हरि दास कहावौ। ताकी सपथ बिलंब न लावौ॥
जै जै जै धुनि होत अकासा। सुमिरत होय दुसह दुख नासा॥
चरन पकरि, कर जोरि मनावौं। यहि औसर अब केहि गोहरावौं॥
उठु, उठु, चलु, तोहि राम दुहाई। पायँ परौं, कर जोरि मनाई॥
ॐ चं चं चं चं चपल चलंता। ॐ हनु हनु हनु हनु हनुमंता॥
ॐ हं हं हाँक देत कपि चंचल। ॐ सं सं सहमि पराने खल-दल॥
अपने जन को तुरत उबारौ। सुमिरत होय आनंद हमारौ॥
यह बजरंग-बाण जेहि मारै। ताहि कहौ फिरि कवन उबारै॥
पाठ करै बजरंग-बाण की। हनुमत रक्षा करै प्रान की॥
यह बजरंग बाण जो जापैं। तासों भूत-प्रेत सब कापैं॥
धूप देय जो जपै हमेसा। ताके तन नहिं रहै कलेसा॥
प्रेम प्रतीतहि कपि भजै, सदा धरैं उर ध्यान।
तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्घ करैं हनुमान॥
।। सियावर राम चन्द्र की जय, पवनपुत्र हनुमान की जय ।।
मंगल भवन अमंगलहारी द्रवउँ दशरथ अजर बिहारी ।
दीन दयाल बिरिदु संभारी। हरहु नाथ सम संकट भारी ।।









बाल समय रवि भक्ष लियो तब, तीनहुं लोक भयो अँधियारो
ताहि सों त्रास भयो जग को, यह संकट काहु सों जात न टारो
देवन आनि करी विनती तब, छांड़ि दियो रवि कष्ट निहारो
को नहिं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो ॥1॥
बालि की त्रास कपीस बसै गिरि, जात महाप्रभु पंथ निहारो
चौंकि महामुनि शाप दियो तब, चाहिये कौन विचार विचारो
कै द्घिज रुप लिवाय महाप्रभु, सो तुम दास के शोक निवारो
को नहिं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो ॥2॥
अंगद के संग लेन गए सिय, खोज कपीस यह बैन उचारो
जीवत न बचिहों हम सों जु, बिना सुधि लाए इहां पगु धारो
हेरि थके तट सिंधु सबै तब, लाय सिया सुधि प्राण उबारो
को नहिं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो ॥3॥
रावण त्रास दई सिय को तब, राक्षसि सों कहि सोक निवारो
ताहि समय हनुमान महाप्रभु, जाय महा रजनीचर मारो
चाहत सीय अशोक सों आगि सु, दे प्रभु मुद्रिका सोक निवारो
को नहिं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो ॥4॥
बाण लग्यो उर लक्ष्मण के तब, प्राण तजे सुत रावण मारो
लै गृह वैघ सुषेन समेत, तबै गिरि द्रोण सु-बीर उपारो
आनि संजीवनी हाथ दई तब, लक्ष्मण के तुम प्राण उबारो
को नहिं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो ॥5॥
रावण युद्घ अजान कियो तब, नाग की फांस सबै सिरडारो
श्री रघुनाथ समेत सबै दल, मोह भयो यह संकट भारो
आनि खगेस तबै हनुमान जु, बन्धन काटि सुत्रास निवारो
को नहिं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो ॥6॥
बन्धु समेत जबै अहिरावण, लै रघुनाथ पाताल सिधारो
देवहिं पूजि भली विधि सों बलि, देउ सबै मिलि मंत्र विचारो
जाय सहाय भयो तबही, अहिरावण सैन्य समैत संहारो
को नहिं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो ॥7॥
काज किये बड़ देवन के तुम, वीर महाप्रभु देखि विचारो
कौन सो संकट मोर गरीब को, जो तुमसो नहिं जात है टारो
बेगि हरौ हनुमान महाप्रभु, जो कछु संकट होय हमारो
को नहिं जानत है जग में कपि, संकटमोचन नाम तिहारो ॥8॥

पवन तनय संकट हरण, मंगल मूरति रूप ।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप ।।
लाल देह लाली लसे, अरु धरि लाल लंगूर।
  बज्र देह दानव दलन, जय जय जय कपि सूर ।।
 बोलो पवनसुत हनुमान कि जय ।














ॐ जय श्री श्याम हरे, बाबा जय श्री श्याम हरे |
खाटू धाम विराजत, अनुपम रूप धरे || ॐ

रतन जड़ित सिंहासन, सिर पर चंवर ढुरे |
तन केसरिया बागो, कुण्डल श्रवण पड़े || ॐ

गल पुष्पों की माला, सिर पार मुकुट धरे |
खेवत धूप अग्नि पर दीपक ज्योति जले || ॐ

मोदक खीर चूरमा, सुवरण थाल भरे |
सेवक भोग लगावत, सेवा नित्य करे || ॐ

झांझ कटोरा और घडियावल, शंख मृदंग घुरे |
भक्त आरती गावे, जय - जयकार करे || ॐ

जो ध्यावे फल पावे, सब दुःख से उबरे |
सेवक जन निज मुख से, श्री श्याम - श्याम उचरे || ॐ

श्री श्याम बिहारी जी की आरती, जो कोई नर गावे |
कहत भक्त - जन, मनवांछित फल पावे || ॐ

जय श्री श्याम हरे, बाबा जी श्री श्याम हरे |
निज भक्तों के तुमने, पूरण काज करे || ॐ

गाइये गणपति जगवंदन | शंकर सुवन भवानी के नंदन ॥
गाइये गणपति जगवंदन ...

सिद्धि सदन गजवदन विनायक | कृपा सिंधु सुंदर सब लायक॥
गाइये गणपति जगवंदन ...

मोदक प्रिय मुद मंगल दाता | विद्या बारिधि बुद्धि विधाता॥
गाइये गणपति जगवंदन ...

मांगत तुलसीदास कर जोरे | बसहिं रामसिय मानस मोरे ॥

 गणपति जगवंदन ...

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ॐ जय गंगे माता, श्री गंगे माता |
जो नर तुमको ध्यावता, मनवंछित फल पाता |

चन्द्र सी ज्योत तुम्हारी जल निर्मल आता |

शरण पड़े जो तेरी, सो नर तर जाता |

पुत्र सगर के तारे सब जग को ज्ञाता |

कृपा दृष्टि तुम्हारी, त्रिभुवन सुख दाता |

एक ही बार भी जो नर तेरी शरणगति आता |

यम की त्रास मिटा कर, परम गति पाता |

आरती मात तुम्हारी जो जन नित्य गाता |

दास वही जो सहज में मुक्ति को पाता |

ओउम जय गंगे माता |

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सुन मेरी देवी पर्वत वासिनी,
कोई तेरा पार न पाया || टेक ||

पान सुपारी ध्वजा नारियल ले,
तेरी भेंट चढ़ाया || सुन ||

सारी चोली तेरे अंग बिराजे,
केसर तिलक लगाया || सुन ||

ब्रह्मा वेद पढ़े तेरे द्वारे,
शंकर ध्यान लगाया || सुन ||

नंगे नंगे पग से तेरे,
सम्मुख अकबर आया,
सोने का छत्र चढ़ाया || सुन ||

ऊँचे ऊँचे पर्वत बन्यौ शिवालो,
नीचे महल बनाया || सुन ||

सतपुरा द्वापर त्रेता मध्ये,
कलयुग राज सवाया || सुन ||

धुप, दीप नैवेद्य आरती,
मोहन भोग लगाया || सुन ||

ध्यानू भगत मैया तेरा गुण गावे,
मनवांछित फल पाया |

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जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा

जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा .
माता जाकी पारवती पिता महादेवा

एकदन्त दयावन्त चारभुजाधारी
माथे पर तिलक सोहे मूसे की सवारी .
पान चढ़े फल चढ़े और चढ़े मेवा
लड्डुअन का भोग लगे सन्त करें सेवा ..

अंधे को आँख देत कोढ़िन को काया
बाँझन को पुत्र देत निर्धन को माया .
' सूर' श्याम शरण आए सफल कीजे सेवा
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा

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मैं तो आरती उतारूँ रे संतोषी माता की
जय जय संतोषी माता जय जय मां

बड़ी ममता है बड़ा प्यार मां की आँखों में
बड़ी करुणा माया दुलार मां की आँखों में

क्यूं न देखूं बारम्बार मां की आँखों में
दिखे हर घड़ी नया चमत्कार मां की आँखों में

नृत्य करूं छुम छुम झम झम झम झुम झुम
झांकी निहारूं रे ओ प्यारी -२ झांकी निहारूं रे

मैं तो आरती उतारूँ रे संतोषी माता की
जय जय संतोषी माता जय जय मां

सदा होती है जय जयकार मां के मन्दिर में
नित झांझर की हो झंकार मां के मन्दिर में

सदा मंजीरे करते पुकार मां के मन्दिर में
दिखे हर घड़ी नया चमत्कार मां के मन्दिर में

दीप धरुं धूप धरुं प्रेम सहित भक्ति करूं
जीवन सुधारुं रे ओ प्यारा -२ जीवन सुधारुं रे

मैं तो आरती उतारूँ रे संतोषी माता की


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ॐ जय श्री श्याम हरे, बाबा जय श्री श्याम हरे |
खाटू धाम विराजत, अनुपम रूप धरे || ॐ

रतन जड़ित सिंहासन, सिर पर चंवर ढुरे |
तन केसरिया बागो, कुण्डल श्रवण पड़े || ॐ

गल पुष्पों की माला, सिर पार मुकुट धरे |
खेवत धूप अग्नि पर दीपक ज्योति जले || ॐ

मोदक खीर चूरमा, सुवरण थाल भरे |
सेवक भोग लगावत, सेवा नित्य करे || ॐ

झांझ कटोरा और घडियावल, शंख मृदंग घुरे |
भक्त आरती गावे, जय - जयकार करे || ॐ

जो ध्यावे फल पावे, सब दुःख से उबरे |
सेवक जन निज मुख से, श्री श्याम - श्याम उचरे || ॐ

श्री श्याम बिहारी जी की आरती, जो कोई नर गावे |
कहत भक्त - जन, मनवांछित फल पावे || ॐ

जय श्री श्याम हरे, बाबा जी श्री श्याम हरे |
निज भक्तों के तुमने, पूरण काज करे || ॐ


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