एस्ट्रो धर्म :



आखिर श्रेष्ठ कौन है
मंदिरों के शिखर और मस्जिदों की मिनारें ही ऊंची नहीं करनी हैं, मन को भी ऊंचा करना हैं ताकि आदर्शों की स्थापना हो सकें। एक बार गौतम स्वामी ने महावीर स्वामी से पूछा, ‘भंते ! एक व्यक्ति दिन-रात आपकी सेवा, भक्ति, पूजा में लीन रहता हैं, फलतः उसको दीन-दुखियों की सेवा के लिए समय नहीं मिलता और दूसरा व्यक्ति दुखियों की सेवा में इतना जी-जान से संलग्न रहता हैं कि उसे आपकी सेवा-पूजा, यहां तक कि दर्शन तक की फुरसत नहीं मिलती। इन दोनों में से श्रेष्ठ कौन है।
अज्ञानी जीव-अमृत में भी जहर खोज लेता है
भगवान महावीर ने कहा, वह धन्यवाद का पात्र है जो मेरी आराधना-मेरी आज्ञा का पालन करके करता है और मेरी आज्ञा यही है कि उनकी सहायता करों, जिनको तुम्हारी सहायता की जरूरत है। अज्ञानी जीव-अमृत में भी जहर खोज लेता है और मन्दिर में भी वासना खोज लेता है। वह मन्दिर में वीतराग प्रतिमा के दर्शन नहीं करता, इधर-उधर ध्यान भटकाता है और पाप का बंधन कर लेता है। पता है चील कितनी ऊपर उड़ती है? बहुत ऊपर उड़ती है, लेकिन उसकी नजर चांद तारों पर नहीं, जमीन पर पड़े, घूरे में पड़े हुए मृत चूहे पर होती है।
ज्ञानी सम्यकदृष्टि जीव दलदल में भी अनुभव परमात्मा का ही करता है
यहीं स्थिति अज्ञानी मिथ्या दृष्टि जीव की है। वह भी बातें तो बड़ी-बड़ी करता है, सिद्वान्तों की विवेचना तो बड़े ही मन को हर लेने वाले शब्दों व लच्छेदार शैली में करता है, लेकिन उसकी नजर घुरे में पड़े हुए मांस पिण्ड पर होती है, वासना पर होती है और ज्ञानी सम्यकदृष्टि जीव भले ही दलदल में रहे, लेकिन अनुभव परमात्मा का ही करता है।
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