एस्ट्रो धर्म :



सनातन धर्म में सभी जीव, जंतुओ और वनस्पतियों को महत्व मिला है। यही कारण है की किसी ना किसी रुप में नदी, पहाड़ जीव और वनस्पतियों को धार्मिक आस्थाओं के साथ जोड़ा गया ताकि लोग इन्‍हें अपने जीवन का हिस्‍सा बनाए रखें। सनातन धर्म के सिद्धांतों में पीपल वृक्ष को सर्वोत्तम माना गया है। पीपल को दैवीय वृक्ष माना गया है। पीपल की पूजा की जाती है। जानिए पीपल से जुड़े कुछ तथ्‍य। 
  • पद्मपुराण में पीपल वृक्ष को भगवान विष्णु का रुप माना गया है। इसी के चलते धर्म के क्षेत्र में पीपल के वृक्ष को दैवीय पेड़ के रुप में मान्यता मिली और सभी विधि-विधानों के साथ इसकी पूजा की जाने लगी। हिंदू धर्म में अनेक अवसरों पर पीपल वृक्ष की पूजा का विधान है और मान्यता यह भी है की सोमवती अमावस्या के दिन पीपल के वृक्ष में भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी का वास होता है। स्कंद पुराण के अनुसार पीपल के मूल में विष्णु, तने में केशव, शाखाओं में नारायण, पत्तो में हरि आदि देव रहते हैं। ऐसे में पीपल वृक्ष की पूजा करने से सभी देव प्रसन्न होते हैं। पीपल में पितरों का निवास भी माना गया है। इसमें सब तीर्थों का निवास होता है इसलिए ज्यादातर संस्कार इसके नीचे कराए जाते हैं।
  • ज्‍योतिष विज्ञान के अनुसार अगर किसी जातक की शनि साढेसाती चल रही हो तो ऐसे वक्त में हर शनिवार पीपल वृक्ष में जल अर्पित करके इसके सात चक्कर लगाने से लाभ होता है। इसके साथ-साथ शाम के समय पीपल के पेड़ की जड़ में दीपक जलाना भी फायदेमंद होता है।
  • हिंदु धर्म मान्यताओं के अनुसार अगर कोई व्यक्ति पीपल के पेड़ के नीचे भगवान शिव की स्थापना करके नित्य नियम से पूजा आराधना करता हो तो उसके समस्‍त कष्‍ट दूर हो जाते हैं।
  • पीपल के वृक्ष की महत्‍ता का पुराणों और अन्‍य धार्मिक ग्रंथों में खूब वर्णन किया गया है। इस वृक्ष की सकारात्मक उर्जा को देखते हुए ऋषि-महात्माओं नें पीपल वृक्ष के नीचे बैठ कर तप किया और ज्ञान अर्जित किया। महात्मा बुद्ध नें भी पीपल के नीचे बैठकर ही जन्म-मृत्यु और संसार के रहस्यों को जाना था।
  • पीपल के वृक्ष का सिर्फ धर्म और पुराणों में नहीं बल्कि विज्ञान में भी काफी महत्व है। प्रकृति विज्ञान के अनुसार पीपल का वृक्ष दिन-रात आक्सीजन छोड़ता है जो हमारे पर्यावरण के लिए महत्वपूर्ण है। इसके अलावा पीपल के पेड़ को अक्षय वृक्ष भी कहा जाता है क्योंकि ये पेड़ कभी भी पत्ते विहीन नही होता। मतलब इसमें एकसाथ पतझड़ नही होती। पत्ते झड़़ते रहते हैं और नए आते रहते हैं। पीपल के वृक्ष की इस खूबी के कारण इसके जीवन-मृत्यु चक्र का घोतक बताया गया है।
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