एस्ट्रो धर्म :
हिंदी पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ माह में शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी मनाई जाती है। इस बार 2 जून को निर्जला एकादशी है। इस दिन साधक भगवान श्रीहरि विष्णु की पूजा एवं व्रत उपासना करते हैं। इस एकादशी का अति विशेष महत्व है। इस व्रत के पुण्य प्रताप से व्रती की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। साथ ही व्रती को मरणोपरांत मोक्ष की प्राप्ति होती है। धार्मिक मान्यता है कि निर्जला एकादशी का व्रत फल सभी एकादशी के समतुल्य होता है।
हिंदी पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ माह में शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी मनाई जाती है। इस बार 2 जून को निर्जला एकादशी है। इस दिन साधक भगवान श्रीहरि विष्णु की पूजा एवं व्रत उपासना करते हैं। इस एकादशी का अति विशेष महत्व है। इस व्रत के पुण्य प्रताप से व्रती की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। साथ ही व्रती को मरणोपरांत मोक्ष की प्राप्ति होती है। धार्मिक मान्यता है कि निर्जला एकादशी का व्रत फल सभी एकादशी के समतुल्य होता है।
निर्जला एकादशी पूजा शुभ मुहूर्त
निर्जला एकादशी 1 जून को दोहपर 2 बजकर 57 मिनट से आरंभ होकर 2 जून को 12 बजकर 04 मिनट पर समाप्त हो रहा है। अतः व्रती इस दिन भगवान श्रीहरि विष्णु जी की पूजा दोपहर 12 बजकर 04 मिनट तक कर सकते हैं।
निर्जला एकादशी पूजा विधि
व्रती गंगा दशहरा के दिन से तामसी भोजन का त्याग कर दें। साथ ही लहसुन और प्याज मुक्त भोजन ग्रहण करें। रात में भूमि पर शयन करें। अगले दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सबसे पहले भगवान श्रीहरि विष्णु जी का स्मरण करें। इसके पश्चात नित्य कर्मों से निवृत होकर गंगाजल युक्त पानी से स्नान ध्यान करें। अब आमचन कर व्रत संकल्प लें। फिर पीला वस्त्र (कपड़े) पहनें। इसके बाद सूर्य देव को अर्घ्य दें।
तदोपरांत, भगवान श्रीहरि विष्णु जी की पूजा पीले पुष्प, फल, अक्षत, दूर्वा, चंदन आदि से करें। इसके लिए सबसे पहले षोडशोपचार करें। इस समय ओम नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जाप करें। अब निर्जला एकादशी की कथा का पाठ करें। अंत में आरती-अर्चना करें। इस दिन निर्जला उपवास रखने का विधान है। इसलिए अपनी सेहत के अनुसार व्रत करें। दिन भर निर्जला उपवास रखें। संध्या बेला में आरती-अर्चना के बाद फलाहार करें। अगले दिन नित्य दिनों की तरह पूजा कर व्रत खोल पहले ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा देने के बाद भोजन ग्रहण करें।


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