एस्ट्रो धर्म :
भौम प्रदोष व्रत कथा (Bhauma Pradosh Vrat Katha): आज 5 मई को भौम प्रदोष व्रत है. इसे मंगल प्रदोष भी कहा जाता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जो भक्त प्रदोष व्रत रखता है उसकी सभी कामनाओं की पूर्ती होती है, मंगल दोष शांत होता है और दरिद्रता का नाश होता है. प्रदोष व्रत की कथा भी काफी पुण्य फल देने वाली मानी जाती है. आइए पढ़ते है भौम प्रदोष व्रत की कथा....
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, प्राचीन समय में एक नगर में एक वृद्धा रहती थी. उसका एक ही पुत्र था. वृद्धा की हनुमानजी पर गहरी आस्था थी. वह प्रत्येक मंगलवार को नियमपूर्वक व्रत रखकर हनुमानजी की आराधना करती थी. एक बार हनुमानजी ने उसकी श्रद्धा की परीक्षा लेने की सोची.
हनुमानजी साधु का वेश धारण कर वृद्धा के घर गए और पुकारने लगे- है कोई हनुमान भक्त, जो हमारी इच्छा पूर्ण करे?
पुकार सुन वृद्धा बाहर आई और बोली- आज्ञा महाराज.
हनुमान (वेशधारी साधु) बोले- मैं भूखा हूं, भोजन करूंगा, तू थोड़ी जमीन लीप दे.
वृद्धा दुविधा में पड़ गई. अंतत: हाथ जोड़कर बोली- महाराज. लीपने और मिट्टी खोदने के अतिरिक्त आप कोई दूसरी आज्ञा दें, मैं अवश्य पूर्ण करूंगी.
साधु ने तीन बार प्रतिज्ञा कराने के बाद कहा- तू अपने बेटे को बुला. मैं उसकी पीठ पर आग जलाकर भोजन बनाऊंगा.
यह सुनकर वृद्धा घबरा गई, परंतु वह प्रतिज्ञाबद्ध थी. उसने अपने पुत्र को बुलाकर साधु के सुपुर्दकर दिया.
वेशधारी साधु हनुमानजी ने वृद्धा के हाथों से ही उसके पुत्र को पेट के बल लिटवाया और उसकी पीठ पर आग जलवाई. आग जलाकर दु:खी मन से वृद्धा अपने घर में चली गई.
इधर भोजन बनाकर साधु ने वृद्धा को बुलाकर कहा- तुम अपने पुत्र को पुकारो ताकि वह भी आकर भोग लगा ले.
इस पर वृद्धा बोली- उसका नाम लेकर मुझे और कष्ट न पहुंचाओ.
लेकिन जब साधु महाराज नहीं माने तो वृद्धा ने अपने पुत्र को आवाज लगाई. अपने पुत्र को जीवित देख वृद्धा को बहुत आश्चर्य हुआ और वह साधु के चरणों में गिर पड़ी.
हनुमानजी अपने वास्तविक रूप में प्रकट हुए और वृद्धा को भक्ति का आशीर्वाद दिया
![Bhauma Pradosh Vrat - Cycle Pure Agarbathies - YouTube](https://i.ytimg.com/vi/gXfLQCRybiY/maxresdefault.jpg)
भौम प्रदोष व्रत कथा (Bhauma Pradosh Vrat Katha): आज 5 मई को भौम प्रदोष व्रत है. इसे मंगल प्रदोष भी कहा जाता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जो भक्त प्रदोष व्रत रखता है उसकी सभी कामनाओं की पूर्ती होती है, मंगल दोष शांत होता है और दरिद्रता का नाश होता है. प्रदोष व्रत की कथा भी काफी पुण्य फल देने वाली मानी जाती है. आइए पढ़ते है भौम प्रदोष व्रत की कथा....
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, प्राचीन समय में एक नगर में एक वृद्धा रहती थी. उसका एक ही पुत्र था. वृद्धा की हनुमानजी पर गहरी आस्था थी. वह प्रत्येक मंगलवार को नियमपूर्वक व्रत रखकर हनुमानजी की आराधना करती थी. एक बार हनुमानजी ने उसकी श्रद्धा की परीक्षा लेने की सोची.
हनुमानजी साधु का वेश धारण कर वृद्धा के घर गए और पुकारने लगे- है कोई हनुमान भक्त, जो हमारी इच्छा पूर्ण करे?
पुकार सुन वृद्धा बाहर आई और बोली- आज्ञा महाराज.
हनुमान (वेशधारी साधु) बोले- मैं भूखा हूं, भोजन करूंगा, तू थोड़ी जमीन लीप दे.
वृद्धा दुविधा में पड़ गई. अंतत: हाथ जोड़कर बोली- महाराज. लीपने और मिट्टी खोदने के अतिरिक्त आप कोई दूसरी आज्ञा दें, मैं अवश्य पूर्ण करूंगी.
साधु ने तीन बार प्रतिज्ञा कराने के बाद कहा- तू अपने बेटे को बुला. मैं उसकी पीठ पर आग जलाकर भोजन बनाऊंगा.
यह सुनकर वृद्धा घबरा गई, परंतु वह प्रतिज्ञाबद्ध थी. उसने अपने पुत्र को बुलाकर साधु के सुपुर्दकर दिया.
वेशधारी साधु हनुमानजी ने वृद्धा के हाथों से ही उसके पुत्र को पेट के बल लिटवाया और उसकी पीठ पर आग जलवाई. आग जलाकर दु:खी मन से वृद्धा अपने घर में चली गई.
इधर भोजन बनाकर साधु ने वृद्धा को बुलाकर कहा- तुम अपने पुत्र को पुकारो ताकि वह भी आकर भोग लगा ले.
इस पर वृद्धा बोली- उसका नाम लेकर मुझे और कष्ट न पहुंचाओ.
लेकिन जब साधु महाराज नहीं माने तो वृद्धा ने अपने पुत्र को आवाज लगाई. अपने पुत्र को जीवित देख वृद्धा को बहुत आश्चर्य हुआ और वह साधु के चरणों में गिर पड़ी.
हनुमानजी अपने वास्तविक रूप में प्रकट हुए और वृद्धा को भक्ति का आशीर्वाद दिया
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