सनातन धर्म में शनि को न्याय का देवता माना गया है। ऐसे में हिंदू धर्म में शनिवार के दिन शनिदेव की पूजा का विशेष महत्व बताया गया है। माना जाता है कि शनि हमारे जीवन को अत्यधिक प्रभावित करते हैं।
वहीं ज्योतिष के अनुसार जो लोग अपनी कुंडली से शनि की दशा को सुधारना चाहते हैं वे शनिवार के दिन शनि मंदिर जरूर जाएं। वैसे तो हमारे भारत देश में ऐसे बहुत से मंदिर स्थापित हैं, जिनकी मान्यताएं दूर-दूर तक फैली हुई हैं। लेकिन आज हम आपको शनिदेव के एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां साल में एक बार चमत्कार जरूर होता है।
समुद्री तल से लगभग 7000 फुट की ऊंचाई पर
बताया जाता है कि यह मंदिर समुद्री तल से लगभग 7000 फुट की ऊंचाई पर स्थित है। पौराणिक कथाओं के अनुसार न्याय के देवता शनिदेव को हिंदू देवी यमुना का भाई है। देवभूमि उत्तराखंड के खरसाली में शनिदेव का धाम स्थित है। बताया जाता है कि यहां लोग अपने कष्टों को दूर करने के लिए हर साल बड़ी संख्या में आते हैं और शनिदेव का दर्शन करते हैं।
मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण पांडवों ने करवाया था। यह मंदिर पांच मंजिला है, लेकिन बाहर से देखने से पता नहीं चल पाता कि यह मंदिर पांच मंजिला है। जानकारों के अनुसार इस मंदिर के निर्माण में पत्थर और लकड़ी का उपयोग किया गया है।
अखंड ज्योति : जो दूर करती है जीवन के सारे दुख
वहीं इस मंदिर में शनिदेव की कांस्य की मूर्ति विराजमान है और साथ ही यहां एक अखंड ज्योति भी मौजूद है। मान्यता है कि इस अखंड ज्योति के दर्शन मात्र से ही जीवन के सारे दुख दूर हो जाते हैं और शनि दोष से मुक्ति मिल जाती है। कहते हैं कि इस मंदिर में साल में एक बार चमत्कार होता है।
वहीं इस मंदिर में शनिदेव की कांस्य की मूर्ति विराजमान है और साथ ही यहां एक अखंड ज्योति भी मौजूद है। मान्यता है कि इस अखंड ज्योति के दर्शन मात्र से ही जीवन के सारे दुख दूर हो जाते हैं और शनि दोष से मुक्ति मिल जाती है। कहते हैं कि इस मंदिर में साल में एक बार चमत्कार होता है।
स्थानीय लोगों के अनुसार, हर साल कार्तिक पूर्णिमा के दिन मंदिर के ऊपर रखे घड़े खुद बदल जाते हैं। बताया जाता है कि इस दिन जो भक्त शनि मंदिर में आता है, उसके सारे कष्ट दूर हो जाते हैं।
शनिदेव यहां आते हैं बहन यमुना से मिलने
यहां प्रचलित किंवदंतियों के अनुसार प्रतिवर्ष अक्षय तृतीय पर शनि देव यमुनोत्री धाम में अपनी बहन यमुना से मिलकर खरसाली लौटते हैं। भाईदूज या यम द्वितिया के त्यौहार यमुना को खरसाली ले जा सकते हैं, ये पर्व दिवाली के दो दिन बाद आता है।
यहां प्रचलित किंवदंतियों के अनुसार प्रतिवर्ष अक्षय तृतीय पर शनि देव यमुनोत्री धाम में अपनी बहन यमुना से मिलकर खरसाली लौटते हैं। भाईदूज या यम द्वितिया के त्यौहार यमुना को खरसाली ले जा सकते हैं, ये पर्व दिवाली के दो दिन बाद आता है।
शनिदेव और देवी यमुना को पूजा-पाठ कर के एक धार्मिक यात्रा के साथ लाया ले जाया जाता है। मंदिर में शनि देव 12 महीने तक विराजमान रहते हैं और सावन की संक्रांति में खरसाली में तीन दिवसीय शनि देव मेला भी आयोजित किया जाता है।
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