ऐस्ट्रो  धर्म : 

रामायण कथा हमें छोटी से छोटी बात की प्रेरणा देती है। रामायण का मूल सार व्यक्ति को आदर्श जीवन जीने की ओर प्रेरित करता है। 14 वर्ष के वनवास के दौरान सीता हरण से पहले माता सीता मारिच की माया के जाल में फंस जाती हैं और प्रभु राम से स्वर्ण मृग लाने के लिए हठ करने लगती हैं।
प्रभु श्री राम मृग का शिकार करने मृग के पीछ-पीछे भागते हैं। अंत में राम के सधे हुए बाण से सोने का मृग घायल हो जाता है। परंतु इस दौरान भगवान राम को बहुत देर हो जाती है। ऐसे में माता सीता का मन अपने नाथ के लिए बेचैन होने लगता है। माता सीता लक्ष्मण से प्रभु राम को खोजने के लिए लक्ष्मण से आग्रह करती हैं।

लक्ष्मण को भाभी सीता की आज्ञा पालन करने के लिए वन में जाना पड़ता है लेकिन जाते-जाते लक्ष्मण एक सीमा रेखा बनाकर जाते हैं और सीता से आग्रह करते हैं कि वह इस रेखा को किसी भी हाल में पार न करें।

लक्ष्मण के जाने के बाद रावण साधु के रूप में भिक्षा मांगने आता है। माता सीता सीमा रेखा में रहकर भिक्षा देने का प्रयास करती हैं लेकिन रावण सीमा रेखा से निकलकर भिक्षा देने का आग्रह करता है। साधु जानकर माता सीता लक्ष्मण रेखा को पार कर जाती हैं। तब अपने असली रूप में आकर रावण माता सीता का अपहरण कर लेता है।

वहीं जब प्रभु राम और लक्ष्मण वापस कुटिया में लौटते हैं तब सीता को वहां न पाकर बड़े आशंकित हो जाते हैं। उनकी तलाश में दोनों भाई निकल पड़ते हैं। माता सीता को खोजते-खोजते उन्हें माता सीता के कुछ आभूषण मिले। राम ने उन आभूषणों में से कर्णफूल को दिखाकर लक्ष्मण से पूछा कि यह तो सीता के कर्णफूल हैं लेकिन यह घने वन में कैसे आए।


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इस पर लक्ष्मण ने कहा कि हे भाईया राम! कर्णफूल भाभी के ही हैं यह मैं कैसे बता सकता हूं, मैंने तो कभी भाभी के मुख की ओर देखा ही नहीं। मैं तो सेवक और पुत्र भाव से सदा भाभी के चरणों को देखा है इसलिए मैं सिर्फ उनकी पायल को पहचानता हूं। लक्ष्मण की इन बातों को सुनकर भगवान राम सीता के प्रति लक्ष्मण सेवा और आदर भाव को देखकर आनंदित हो गए।
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