ऐस्ट्रो धर्म
हिमाचल प्रदेश में कई देवी-देवताओं के मंदिर स्थापित हैं। ये मंदिर बहुत ही रहस्यमयी और चमत्कारी मंदिर हैं, जो कि प्राचीन हैं। इस मंदिरों से लोगों की गहरी आस्था जुड़ी हुई है। वहीं हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में स्थित शिव मंदिर बहुत ही प्रसिद्ध और रहस्यमयी है। इस मंदिर में भगवान शिव और माता पार्वती का मिलन हुआ था। यहां बड़ी संख्या में श्रृद्धालु शिव-पार्वती का मिलन देखने पहुंचते हैं। लेकिन यह अद्भुत दृश्य एक खास मौसम में ही देखने को मिलता है। तो आइए जानते हैं माता पार्वती और शिव के इस मिलन के पीछे का रहस्य और इसका इतिहास...
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हिमाचल प्रदेश में कई देवी-देवताओं के मंदिर स्थापित हैं। ये मंदिर बहुत ही रहस्यमयी और चमत्कारी मंदिर हैं, जो कि प्राचीन हैं। इस मंदिरों से लोगों की गहरी आस्था जुड़ी हुई है। वहीं हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में स्थित शिव मंदिर बहुत ही प्रसिद्ध और रहस्यमयी है। इस मंदिर में भगवान शिव और माता पार्वती का मिलन हुआ था। यहां बड़ी संख्या में श्रृद्धालु शिव-पार्वती का मिलन देखने पहुंचते हैं। लेकिन यह अद्भुत दृश्य एक खास मौसम में ही देखने को मिलता है। तो आइए जानते हैं माता पार्वती और शिव के इस मिलन के पीछे का रहस्य और इसका इतिहास...
यहां स्थित है यह शिव मंदिर
कांगड़ा जिसे में स्थापित काठगढ़ महादेव मंदिर बहुत ही रहस्यमयी प्रसिद्ध माना जाता है। इस मंदिर में विराजमान शिवलिंग देश का पहला व इलकौता ऐसा शिवलिंग है जो की दो भागों में विभाजित है। मान्यताओं के अनुसार, शिवलिंग के एक भाग में माता पार्वती तो दूसरे में शिव का रूप है। वहीं शिव जी के रूप में पूजे जाने वाले शिवलिंग की ऊंचाई माता पार्वती के रूप में पूजे जाने वाले शिवलिंग के अपेक्षा थोड़ी कम है। जहां शिव रूपी शिवलिंग की ऊंचाई 8 फुट है वहीं माता पार्वती रूपी शिवलिंग की 6 फुट है। खास बात तो यह है की यह शिवलिंग अष्टकोणीय है।
इस समय होता है मिलन
ग्रहों और नक्षत्रों का ध्यान रखकर बनाए गए इस मंदिर में शिवलिंग के दोनों हिस्सों के बीच का अंतर स्वयं ही घटना-बढ़ता रहता है। गर्मी में यह स्पष्ट रूप से दो अलग-अलग हिस्सों में बंट जाता है और सर्दी में वापस एकाकार हो जाता है। इस शिवलिंग को अर्धनारीश्वर मान कर इसकी पूजा की जाती है।
काठगढ़ महादेव मंदिर का यह विचित्र शिवलिंग शिवरात्रि के दिन दोनों भाग मिलकर एक हो जाते हैं और शिवरात्रि के बाद इनमें वापस धीरे-धीरे अंतर बढ़ने लगता है। शिवरात्रि के त्योहार पर हर साल मेला भी लगता है। शिव और शक्ति के अर्द्धनारीश्वर स्वरुप के संगम के दर्शन करने के लिए यहां कई भक्त आते हैं। सिद्ध मंदिर होने के कारण यहां भक्तजन सावन के महीने में भी आराधना करने आते हैं।
सिकंदर ने करवाया था मंदिर का निर्माण
स्थानीय प्रचलित मान्यताओं के अनुसार यूनानी शासक सिकंदर ने करवाया था। उसने यहां के चमत्कार से प्रभावित होकर टीले को समतल करवा कर यहां मंदिर का निर्माण करवाया था।
यह है मंदिर की पौराणिक मान्यता
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार काठगढ़ मंदिर मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के अनुज भ्राता भरत को अत्यंत प्रिय था। यही नहीं इसे उनकी आराध्य स्थली भी कहा जाता है। कथानकों के अनुसार भरत जी जब भी अपने ननिहाल कैकेय देश जाते तो इस मंदिर के दर्शन जरूर करते। इसके अलावा जब कभी उन्हें मौका मिलता तो भी इस स्थान पर भोलेनाथ और माता पार्वती की पूजा करने आते थे।
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