ऐस्ट्रो  धर्म : 

भगवान परशुराम को श्रीहरी का छठा अवतार माना जाता है। उनका जन्म वैशाख शुक्ल की तृतीया तिथि को जानापाव पर्वत पर हुआ था। उनके पिता भृगुश्रेष्ठ महर्षि जमदग्नि ने पुत्रेष्टि यज्ञ का आयोजन किया था, जिससे प्रसन्न होकर देवराज इन्द्र के वरदान से परशुराम का जन्म हुआ था। उनकी माता का नाम रेणुका था। जमदग्नि ऋषि के पुत्र होने के कारण वह जामदग्न्य और शिवजी के द्वारा परशु प्रदान करने से वह परशुराम कहलाये।

ब्रहमर्षि विश्वामित्र थे परशुरामजी के गुरु
भगवान परशुराम की प्रारंभिक शिक्षा महर्षि विश्वामित्र और महर्षि ऋचीक के आश्रम में संपन्न हुई थी। परशुराम को महर्षि ऋचीक से सारंग नामक दिव्य वैष्णव धनुष और कश्यप ऋषि से अविनाशी वैष्णव मन्त्र प्राप्त हुआ था। तत्पश्चात कैलाश पर्वत पर तपस्या कर उन्होंने दिव्यास्त्र विद्युदभि नाम का परशु प्राप्त किया था। महादेव ने उनको श्रीकृष्ण का त्रैलोक्य विजय कवच, स्तवराज स्तोत्र एवं मन्त्र कल्पतरु प्रदान किया था। चक्रतीर्थ में भगवान परशुराम ने कठोर तप किया था इससे प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उनको चिरंजीवी होने का वरदान दिया था।
भगवान परशुराम पराक्ररमी प्रसिद्ध योद्धाओं के गुरु रहे हैं। उन्होंने भीष्म, द्रोण और कर्ण को शस्त्रविद्या प्रदान की थी। भगवान परशुराम का उल्लेख रामायण, महाभारत, भागवत पुराण और कल्कि पुराण जैसे पौराणिक ग्रंथों में मिलता है। मान्यता है कि परशुरामजी ने तीर गुजरात से लेकर केरला तक समुद्र को पीछे धकेल कर नई भूमि का निर्माण किया था।
परशुरामजी ने किया था सहस्त्रार्जुन का वध
एक बार हैहय वंश के राजा का‌र्त्तवीर्यअर्जुन ने तपस्या कर भगवान दत्तात्रेय से सहस्त्र भुजाएँ और युद्ध में किसी से परास्त न होने का वर प्रप्त कर लिया। वह एक बार जंगल में शिकार करता हुआ जमदग्नि मुनि के आश्रम में जा पहुँचा। वह आश्रम से देवराज इन्द्र द्वारा दी गई कपिला कामधेनु को बलपूर्वक ले जाने लगा। तब परशुराम ने सहस्त्रार्जुन की सभी भुजाओं को काटते हुए उसका सिर धड़ से अलग कर दिया। सहस्त्रार्जुन के पुत्रों ने इसका बदला लेते हुए उनके ध्यानस्थ पिता जमदग्नि की हत्या कर दी। उनकी माता भी अपने पति के साथ सती हो गई। इससे क्रोधित होकर परशुरामजी ने महिष्मती नगर पर आक्रमण कर उसके ऊपर कब्जा कर लिया और इसके बाद 21 बार उन्होंने पृथ्वी को क्षत्रिय विहिन कर दिया। कहा तो यह भी जाता है कि उन्होंने अपने पिता का श्राद्ध सहस्त्रार्जुन के पुत्रों के रक्त से किया था। इसके बाद महर्षि ऋचीक ने परशुराम को आगे और संहार करने से रोका।

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