भीलवाड़ा। व्यकित को कभी धन का अभिमान नहीं करना चाहिए। लक्ष्मी चंचल हेै आज मेरे पास तो कल तेरे पास।  यह कहना है महामण्डलेष्वर स्वामी जगदीष पुरी महाराज का।अग्रवाल उत्सव भवन में चातुर्मास प्रवचन के दौरान आयोजित धर्मसभा को यमराज-निचिकेता प्रसंग पर उद्बोधित करते हुए स्वामी जी ने बताया कि रुपया-पैसा हाथ का मेल है। पल में समाप्त हो जाता है इसीलिए व्यक्ति को कभी धन पर अभिमान नहीं करना चाहिए। रिष्ते और रुपयों को एक ही तराजू में नहीं तौलना चाहिए। जीवन में जितनी अहमियत रिष्ते की है उतनी ही रुपयों की भी है। लेकिन रिष्ते जीवन पर्यन्त व्यक्ति के साथ चलते हैं। हर सुख-दुख में व्यक्ति केसाथ होते हैं जबकि रुपया किसी का सगा नहीं है। रुपया आते ही इन्सान सातवें आसमान पर चढ जाता है। अच्छे बुरे का भान समाप्त हो जाता है।  आवष्यकता से अधिक रुपया व्यक्ति को परमादी बना देता है। धन का उपयोग कम अनावष्यक कार्यो में दुरुपयोग ज्यादा होने लगता हेै। जिस व्यक्ति के पास जितना ज्यादा रुपया है वो व्यक्ति उतना ही दुःखी ओैर परेषान हेै।  रुपयों से अच्छा बिस्तर खरीदा जा सकता है किन्तु नीन्द नहीं। इसीलिये व्यक्ति को जीवन में रुपये पैसे पर कभी अभिमान नहीं करना चाहिए।धर्मसभा को संत महेन्द्र चैतन्य ने ’’भक्तों के घर भी सांवरे आते रहा करों’’  भजन से संगीतमय बनाया।सकल जैन समाज द्वारा चातुर्मास सेवा सप्ताह के अंतर्गत विभिन्न सेवाकार्य एवं आयोजन करवाये जा रहे हैं। समाज का चातुर्मास समिति के टी.सी. चैधरी, भरत व्यास व संजय निमोदिया आदि  ने स्वागत किया एवं अतिथियों ने माल्यार्पण कर महामण्डलेष्वर का आषीर्वाद प्राप्त किया।

पंकज पोरवाल
भीलवाड़ा
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