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कार्यक्रम :- ""माँ की महिमा"" विशेष -04

‘ज़मीं हो या आसमां... अधूरा बिन माँ
बचपन में अपने पाठ्यक्रम में पढा था, एक ऐसी ‘माँ’ की कहानी जिसने दुसरे के पुत्र की रक्षा करने के लियें अपने एकलौते मासूम बेटे का बलिदान दे दिया... आज भी इतिहास में वो माँ अपने इस महान कार्य के और अपनी असीम स्वामिभक्ति के लियें याद की जाती हैं, सभी ने शायद उसका नाम कभी सुना हो वो थी---‘पन्ना धाय’ ।
‘धाय माँ’ एक ऐसी माँ होती हैं, जो दुसरे की कोख से पैदा हुई सन्तान को भी अपना ही मानती हैं और उसी के समान उसे अपना दूध पिलाकर उसका लालन-पालन करती हैं... ‘पन्ना धाय’ भी इसी तरह चित्तोड़ के ‘राणा सांगा’ के पुत्र ‘राणा उदयसिंह’ को अपने सीने से लगाकर पाल रही थी, उसकी हर छोटी-से-छोटी बात का ख्याल रखती थी, उसे कभी कोई तकलीफ़ ना होने देती क्योंकि वो जानती थी कि उसे बड़े होकर राजसिंहासन पर बैठना हैं, एक राज्य का संचालन करना हैं, वो एक राजघराने की धरोहर हैं तो वो उसी प्रकार से उसका ध्यान रखती थी ।
उसका भी एक बेटा था ‘चंदन’ उतना ही बड़ा उतना ही प्यारा वो दोनों को एक साथ पाल रही थी... लेकिन एक दिन दासीपुत्र ‘बनवीर’ ने उनकी रियासत पर हमला कर दिया क्योंकि वो ‘राजकुमार उदयसिंह’ को मारकर उसका राज्य हड़प लेना चाहते था, पन्ना को इसकी पूर्वसूचना मिल गई और ऐसे कठिन समय में ‘पन्ना’ ने बड़ी सूझ-बुझ से काम लिया और अपने बेटे ‘चंदन’ को ‘उदयसिंह’ के वस्त्र पहनाकर उसकी जगह सुलाकर नन्हे राजकुमार को अपना बेटा बनाकर महल से बाहर निकाल दिया... जब दुश्मन राजमहल की भीतर घुसे तो ‘बनवीर’ ने उसे ही राजपुत्र समझ उसकी आँखों के सामने ही उसकी हत्या कर दी और वो खामोश आंसू जब्त कियें ये सब देखती रही मगर अपनी स्वामिभक्ति के जज्बे को कमजोर न पड़ने दिया ।
इस प्रकार एक देशभक्त ‘माँ’ ने संकट की घड़ी में कोई और उपाय ना देख अपने ही बेटे को देश के लियें कुर्बान कर दिया मगर अपनी अमानत पर कोई आंच ना आने दी इसलियें आज भी उनकी कहानी अमर हैं... जो बताती हैं कि एक माँ सिर्फ़ माँ होती हैं इसके सिवा और कुछ नहीं... पूजनीय हैं वो माँ जो विपरीत परिस्थतियों में भी डगमगाती नहीं बल्कि बड़े धैर्य के साथ उसका सामना करती हैं... तभी तो जग में ईश्वर की तरह पूजी जाती हैं
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