एस्ट्रो धर्म :
सनातन धर्म के आदि पंच देवों में भगवान सूर्य नारायण भी आते हैं। वहीं आदि पंच देवों में से कलयुग में सूर्य ही प्रत्यक्ष देव हैं। हिंदू धर्म के वेदों में भी सूर्य की पूजा के बारे में बताया गया है। वहीं हर प्राचीन ग्रंथों में सूर्य की महत्ता का वर्णन किया गया है।
ज्योतिष में भी सूर्य देव को ग्रहों का राजा माना गया है। सूर्य को हिन्दू पौराणिक कथा के अनुसार ब्रह्मांण की आत्मा माना गया है। ऐसे में माना जाता है कि रविवार को सूर्यदेव की पूजा से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इनकी उपासना से स्वास्थ्य,ज्ञान, सुख,पद,सफलता,प्रसिद्धि आदि की प्राप्ति होना माना गया है।
सूर्यदेव की पूजा में कुमकुम या लाल चंदन, लाल फूल, चावल, दीपक, तांबे की थाली, तांबे का लोटा आदि होना चाहिए। वहीं पूजन में आवाहन, आसन की जरुरत नहीं होती है। जानकारों के अनुसार कलयुग में सूर्य एकमात्र ऐसे देवता हैं जो प्रत्यक्ष ही दिखाई देते हैं। मान्यताओं के अनुसार उगते हुए सूर्य का पूजन उन्नतिकारक होता हैं। इस समय निकलने वाली सूर्य किरणों में सकारात्मक प्रभाव बहुत अधिक होता है। जो कि शरीर को भी स्वास्थ्य लाभ पंहुचाती हैं।
कहा जाता है सूर्य भगवान की आराधना करने से शरीर में सकारात्मक ऊर्जा आती है। हिंदू धर्म के सूर्य ही एक ऐसे देवता हैं जो प्रत्यक्ष रूप से आंखों के सामने हैं। हम सूर्य भगवान की आराधना उनको देख कर कर सकते हैं।
आज रविवार का दिन है और ऐसे में आज हम आपको बता रहे हैं ओडिशा में स्थित कोणार्क के सूर्य मंदिर के बारे में, यह मंदिर भगवान सूर्य को समर्पित है। जो भारत की प्राचीन धरोहरों में से एक है। इस मंदिर की भव्यता के कारण ये देश के सबसे बड़े 10 मंदिरों में गिना जाता है।
कोणार्क का सूर्य मंदिर ओडिशा राज्य के पुरी शहर से लगभग 23 मील दूर नीले जल से लबरेज चंद्रभागा नदी के तट पर स्थित है। इस मंदिर को पूरी तरह से सूर्य भगवान को समर्पित किया गया है इसीलिए इस मंदिर का संरचना भी सूर्य से जुड़ाव के तहत की गई है।
कोणार्क का सूर्य मंदिर ओडिशा राज्य के पुरी शहर से लगभग 23 मील दूर नीले जल से लबरेज चंद्रभागा नदी के तट पर स्थित है। इस मंदिर को पूरी तरह से सूर्य भगवान को समर्पित किया गया है इसीलिए इस मंदिर का संरचना भी सूर्य से जुड़ाव के तहत की गई है।
कोणार्क का सूर्य मंदिर : जैसे 7 ताकतवर बड़े घोड़े खींच रहे हों रथ...
इस मंदिर के रचना इस प्रकार की गई है जैसे एक रथ में 12 विशाल पहिए लगाए गये हों और इस रथ को 7 ताकतवर बड़े घोड़े खींच रहे हों और इस रथ पर सूर्य देव को विराजमान दिखाया गया है। यहां मंदिर से आप सीधे सूर्य भगवान के दर्शन कर सकते हैं। मंदिर के शिखर से उगते और ढलते सूर्य को पूर्ण रूप से देखा जा सकता है। जब सूर्य निकलता है तो मंदिर से ये नजारा बेहद ही खूबसूरत दिखता है। ऐसे लगता है जैसे सूरज से निकली लालिमा ने पूरे मंदिर में लाल-नारंगी रंग बिखेर दिया हो।
वहीं मंदिर के आधार को सुन्दरता प्रदान करते बारह चक्र साल के बारह महीनों को परिभाषित करते हैं और हर चक्र आठ अरों से मिल कर बना है, जो अर दिन के आठ पहरों को दर्शाते हैं।
इस मंदिर के रचना इस प्रकार की गई है जैसे एक रथ में 12 विशाल पहिए लगाए गये हों और इस रथ को 7 ताकतवर बड़े घोड़े खींच रहे हों और इस रथ पर सूर्य देव को विराजमान दिखाया गया है। यहां मंदिर से आप सीधे सूर्य भगवान के दर्शन कर सकते हैं। मंदिर के शिखर से उगते और ढलते सूर्य को पूर्ण रूप से देखा जा सकता है। जब सूर्य निकलता है तो मंदिर से ये नजारा बेहद ही खूबसूरत दिखता है। ऐसे लगता है जैसे सूरज से निकली लालिमा ने पूरे मंदिर में लाल-नारंगी रंग बिखेर दिया हो।
वहीं मंदिर के आधार को सुन्दरता प्रदान करते बारह चक्र साल के बारह महीनों को परिभाषित करते हैं और हर चक्र आठ अरों से मिल कर बना है, जो अर दिन के आठ पहरों को दर्शाते हैं।
यहां पर स्थानीय लोग सूर्य-भगवान को बिरंचि-नारायण कहते थे। यह मंदिर अपनी अनूठी वास्तुकला के लिए दुनियाभर में मशहूर है और ऊंचे प्रवेश द्वारों से घिरा है। इसका मूख पूर्व में उदीयमान सूर्य की ओर है और इसके तीन प्रधान हिस्से- देउल गर्भगृह, नाटमंडप और जगमोहन (मंडप) एक ही सीध में हैं। सबसे पहले नाटमंडप में प्रवेश द्वार है। इसके बाद जगमोहन और गर्भगृह एक ही जगह पर स्थित है।
इस मंदिर का एक रहस्य भी है जिसके बारे में कई इतिहासकरों ने जानकारी इकट्ठा की है। कहा जाता है कि श्रीकृष्ण के पुत्र साम्ब को श्राप से कोढ़ रोग हो गया था। उन्हें ऋषि कटक ने इस श्राप से बचने के लिये सूरज भगवान की पूजा करने की सलाह दी।
साम्ब ने मित्रवन में चंद्रभागा नदी के सागर संगम पर कोणार्क में बारह वर्ष तपस्या की और सूर्य देव को प्रसन्न किया। सूर्यदेव, जो सभी रोगों के नाशक थे, ने इनके रोग का भी अन्त कर दिया। जिसके बाद साम्ब ने सूर्य भगवान का एक मन्दिर निर्माण का निश्चय किया। अपने रोग-नाश के उपरांत, चंद्रभागा नदी में स्नान करते हुए, उसे सूर्यदेव की एक मूर्ति मिली।
यह मूर्ति सूर्यदेव के शरीर के ही भाग से, देवशिल्पी श्री विश्वकर्मा ने बनायी थी। साम्ब ने अपने बनवाये मित्रवन में एक मन्दिर में, इस मूर्ति को स्थापित किया, तब से यह स्थान पवित्र माना जाने लगा। कई आक्रमणों और नेचुरल डिजास्टर्स के कारण जब मंदिर खराब होने लगा तो 1901 में उस वक्त के गवर्नर जॉन वुडबर्न ने जगमोहन मंडप के चारों दरवाजों पर दीवारें उठवा दीं और इसे पूरी तरह रेत से भर दिया। ताकि ये सलामत रहे और इस पर किसी डिजास्टर का प्रभाव ना पड़े।
इस काम में तीन साल लगे और 1903 में ये पूरी तरह पैक हो गया। वहां जाने वाले को कई बार यह पता नहीं होता है कि मंदिर का अहम हिस्सा जगमोहन मंडप बंद है। बाद में आर्कियोलॉजिस्ट्स ने कई मौकों पर इसके अंदर के हिस्से को देखने की जरूरत बताई और रेत निकालने का प्लान बनाने की बात भी कही।
ये मंदिर दो भागों में बना हुआ है जिसमें से पहले भाग नट मंदिर में सूर्य की किरणें पहुंचती थी और कहा जाता है कि कांच या हीरे सरीखे धातु से वो इस मंदिर की प्रतिमा पर पड़ती थी, जिससे इसकी छटा देखते ही बनती थी। वहीं मंदिर में एक कलाकृति में इंसान हाथी और शेर से दबा है जो की पैसे और घमंड का घोतक है और ज्ञान वर्धक भी है।
कोणार्क का मिथक...
कोणार्क के बारे में एक मिथक और भी है कि यहां आज भी नर्तकियों की आत्माएं आती हैं। अगर कोणार्क के पुराने लोगों की मानें तो आज भी यहां आपको शाम में उन नर्तकियों के पायलों की झंकार सुनाई देगी जो कभी यहां राजा के दरबार में नृत्य करती थीं।
कोणार्क के बारे में एक मिथक और भी है कि यहां आज भी नर्तकियों की आत्माएं आती हैं। अगर कोणार्क के पुराने लोगों की मानें तो आज भी यहां आपको शाम में उन नर्तकियों के पायलों की झंकार सुनाई देगी जो कभी यहां राजा के दरबार में नृत्य करती थीं।
खास बात:
इसमें एक चमत्कारिक बात ये भी है की इस मंदिर का निर्माण एक सैंडविच के तौर पर किया था जिसके बिच में लोहे की प्लेट थे जिसपे मंदिर के पिलर रुके हुए थे। ऐसा भी कहा जाता है की मंदिर के ऊपर एक 52 टन का चुम्बक रखा गया था जो की इन खम्भों से संतुलित था।
इसमें एक चमत्कारिक बात ये भी है की इस मंदिर का निर्माण एक सैंडविच के तौर पर किया था जिसके बिच में लोहे की प्लेट थे जिसपे मंदिर के पिलर रुके हुए थे। ऐसा भी कहा जाता है की मंदिर के ऊपर एक 52 टन का चुम्बक रखा गया था जो की इन खम्भों से संतुलित था।
इसी के चलते भगवान् सूर्य की जो प्रतिमा थी वो हवा में तैरती हुई रहती थी जिसे देख हर कोई हैरत में पड़ जाता था, कहा जाता है इस चुम्बक को विदेशी आक्रमणकारियों ने तोड़ा था।
ऐसा कहा जाता है की मंदिर के ऊपर रखे चुंबक के चलते समुंद्र से गुजरने वाले नाव जो की लोहे की बनी होती थी, इस चुंबकीय क्षेत्र के चलते क्षतिग्रस्त हो जाती थी (किनारे पर अपने आप पहुंच कर) इसलिए उस समय के नाविकों ने उस चुम्बक को हटा दिया। जिसके बाद ही अंग्रेज यहां आ सके।
Post A Comment:
0 comments: