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इस्लाम में रमजान का शुमार सबसे पाक महीने में होता है। मुस्लिम समुदाय के लोग बड़ी बेसब्री से रमजान के महीने का इंतजार करते हैं। तीस दिनों तक चलने वाले इस महीने में विशेष नमाज अदा की जाती है, जिसको तराबी कहा जाता है। इस समय लोग अल्लाह से अपने गुनाहों की माफी मांगते हैं । अल्लाह भी अपने बंदों को बेशुमार रहमतों से नवाजता है और जहन्नुम के दरवाजों को बंद कर जन्नत के दरवाजों को खोल देता है।

रमजान की इबादत का मिलता है कई गुना सवाब
मुस्लिम समुदाय में रमजान का महत्व इसलिए भी ज्यादा है कि मान्यता है इस मुकद्दस महीने में की गई इबादत का सवाब दूसरे महीनों के मुकाबले कई गुना ज्यादा मिलता है। रमजान के महीने में कुरान पढ़ने का भी काफी महत्व बतलाया गया है क्योंकि रमजान महीने के 21वें रोजे को पवित्र कुरान अस्तित्व में आई थी। रमजान के महीने में चांद दिखने के साथ ही तराबी पढ़ने का सिलसिला शुरू हो जाता है। मान्यता है कि रमजान के मुकद्दस महीने में अल्लाह अपने बंदों की हर जायज दुआ को कुबूल कर उसके गुनाहों को माफ करता है।
रमजान में सहरी और इफ्तार का है खास महत्व
रमजान में सहरी और इफ्तार का भी बड़ा महत्व बतलाया गया है। सहरी सूर्योदय से पहले खाए गए खाने को कहते हैं। सहरी के साथ रोजे का प्रारंभ किया जाता है। मान्यता है कि पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब ने सहरी करने को सुन्नत बतलाया है और सहरी करने से बरकत आती है और सवाब मिलता है। शाम को मगरीब की नमाज के बाद जब रोजा खोला जाता है तो उसको इफ्तार कहते हैं। इफ्तार के समय दिल से मांगी गई जायज दुआओं को अल्लाह कबूल करता है।
जहन्नुम से बचाकर जन्नत देता है रमजान
इस्लाम में रमजान के महीने को तीन अशरों या हिस्सों में बांटा है। इन तीनों अशरों में 10-10 रोजे आते हैं। मान्यता है कि रमजान के शुरूआत के दस दिनों में अल्लाह की भरपूर रहमत लोगों पर बरसती है। आगे के दस रोजे यानी दूसरा अशरा मगफिरत का होता हैं। ये दस दिन खुदा से माफी मांगने के होते हैं। आखिरत में खुदा से जन्नत देने की दुआ मांगी जाती है और जहन्नुम की आग से बचने की दुआ की जाती है।
रमजान के महीने की खत्म होने के साथ ही ईद का त्यौहार मनाया जाता है और जरूरतमंदों को जकात दी जाती है। वैसे जकात रोजे रखने के दौरान भी दी जाती है, लेकिन ईद कि नमाज से पहले जरूरतमंदों में फितरा बांटा जाता है। इस वजह से ईद को ईद-उल-फितर कहा जाता है।
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