भारतीय संस्कृति में मानव जीवन के लक्ष्य भौतिक सुख तथा आध्यात्मिक आनंद की प्राप्ति के लिए अनेक देवी देवताओं की पूजा का विधान है जिनमें पंचदेव प्रमुख हैं। पंच देवों का तेज पुंज श्री हनुमान जी हैं।
प्राचीन ग्रन्थों में वर्णित सात करोड़ मन्त्रों में श्री हनुमान जी की पूजा का विशेष उल्लेख है। श्री राम भक्त, रूद्र अवतार, सूर्य-शिष्य, वायु-पुत्र, केसरी-नन्दन, महाबल, श्री बालाजी के नाम से प्रसिद्ध तथा माता अन्जनी के गर्भ से प्रकट हनुमान जी में पांच देवताओं का तेज समाहित हैं।
हनुमान जी पूरे भारतवर्ष में पूजे जाते हैं और जन-जन के आराध्य देव हैं। बिना भेदभाव के सभी हनुमान अर्चना के अधिकारी हैं। अतुलनीय बलशाली होने के फलस्वरूप इन्हें बालाजी की संज्ञा दी गई है। देश के प्रत्येक क्षेत्र में हनुमान जी की पूजा की अलग परम्परा है। वीर-भूमि राजस्थान में ’बाबा‘ या बालाजी के नाम से विख्यात हनुमान जी के अनेक प्रसिद्ध मन्दिर हैं जिनमें सालासर के चमत्कारी श्री बालाजी मन्दिर का विशेष महत्व है।


सालासर बालाजी या सालासर धाम भारत में हनुमान के भक्तों के लिए धार्मिक महत्व का स्थान है। यह चूरू जिला,राजस्थानमें सुजानगढ़ के निकट राष्ट्रीय राजमार्ग 65 पर, सालासर के शहर में स्थित है। बालाजी हनुमान का दूसरा नाम है, यह मंदिर सालासर के बीच में स्थित है और साल भर में असंख्य भक्तों को आकर्षित करता है। चैत्र पूर्णिमा और आश्विन पूर्णिमा पर बड़े मेलों मे देवता की पूजा करने के लिये लाखों भक्तों यात्रा लम्बी लम्बी यात्रा कर पहुचते है।

भारतवर्ष प्रसिद्घ सिद्घपीठ सालासर बालाजी के उद्ïभव तथा सालासर में  होने का इतिहास भी बालाजी के चमत्कारों में से एक चमत्कार है। अपने भक्त की भक्ति से प्रसन्न होकर उसे अमरत्व प्रदान करने वाले सालासर बालाजी महाराज की प्रतिमा का उद्ïभव का नागौर जिले के आसोटा गांव में 1811 में हुआ था। बताया जाता है कि महात्मा मोहनदास जी महाराज की तपस्या से प्रसन्न होकर हनुमान जी ने साक्षाम मूर्ति रूप में प्रकट होने का वचन दिया था। अपने भक्त से किये इस वचन को निभाने के लिए बालाजी ने आसोटा में एक जाट जो कि खेत जोत रहा था, के हल की नोक में कोई कठोर चीज फंसने का का उसे आभास हुआ, तो उसने उसे निकाल कर देखा तो एक पत्थर था। जिसे जाट ने अपने अंगोछे से पोंछकर साफ किया तब उस पर बालाजी महाराज की छवि उभर आई। मूर्ति को जाट ने जांटी के नीचे रख दिया। तभी जाटनी जाट के लिए खाना लेकर आ गई। उसने बालाजी के मूर्ति के बाजरे के चूरमे का भोग लगाया। तभी से बालाजी के चूरमे का भोग लगता है। अपने वचन के मुताबिक बालाजी ने उसी रात्री को आसोटा के तत्कालीन ठाकुर को स्वपन्न में दर्शन देकर मूर्ति को सालासर पंहुचाने को कहा तथा इधर मोहनदास जी को अपने मूर्ति स्वरूप में सालासर आने की बात कहते हुए कहा कि जहां पर बैलगाडिय़ों के पहिये रूके वहीं मेरी मूर्ति को स्थापित कर देना। आसोटा से मूर्ति लेकर वहां के ठाकुर सालासर पंहचे तब सालासर वासियों ने मूर्ति की अगवानी की। उसके बाद बैलों को खुला छोड़ दिया। तब बैल मोहनदास जी के आश्रम के पास आकर रूके। जहां वर्तमान मन्दिर हैं। 
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