भीलवाड़ा । जो हम चाहते हैं वो होता नहीं है और जो होता है वो हम नहीं चाहते हैं। जो हो जाता है वो भाता नहीं है और जो भाता है वो टिकता नहीं है। यह कहना है महामंडलेष्वर स्वामी जगदीष पुरी महाराज का।महाराज श्री अग्रवाल उत्सव भवन में चातुर्मास प्रवास के दौरान आयोजित धर्मसभा को यमराज एवं निचीकेता के प्रसंग में निचीकेता के तीन वरदानों की उपयोगिता  पर उद्बोधित करते हुए उन्होंने बताया कि व्यक्ति का मन बडा चचंल होता है। समय समय पर इसकी सोच ओैर विचारधाराएं बदलती रहती है। कभी कभी तो वो जो प्राप्त नहीं हो सकता है उसकी भी चाहत कर लेता है और व्याकुल होता रहता है। इच्छित वस्तु नहीं मिलने पर व्यक्ति का मन खिन्नता से भर जाता है और मन में तरह तरह के विचार आने लगते हैं। उस समय  व्यक्ति मौत को गले लगाने में भी हिचक नहीं होती है। हर तरह से निराष और परेषान व्यक्ति को मृत्यु ही अंतिम उपाय नजर आता हेै। ऐसे में यदि व्यक्ति प्रभू भक्ति और हरिचरणों में लीन हो जाये तो उसकी समस्याओं का समाधान हो सकता है किन्तु खिन्नता के वषीभूत व्यक्ति सच की ओर अग्रसर नहीं हो पाता। संसार का शाष्वस्त सत्य मृत्यु है और दुनियां का सबसे बडा भय भी मृत्यु ही हेै।  मरने से हर व्यकित को डर लगता है किन्तु  जिनका मन खिन्न है वो मरने से  नहीं घबराता। जो प्रभू ने लिख दिया उसे कोई टाल नहीं सकता इसीलिए तो कहा गया है कि ’’तू करता वो है जो तूं चाहता है, पर होता वो है जो मैं चाहता हूं’’ ।  ’’ तूं कर वो जो मैं चाहता हूं, फिर देख होगा वही जो तूं चाहता हेै’’। धर्मसभा को संत महेन्द्र चैतन्य जी ने  भजन की सुन्दर प्रस्तुति से संगीतमय बनाया।महामण्डलेष्वर का  टी.सी. चैधरी, भरत व्यास आदि  ने माल्यार्पण कर आषीर्वाद प्राप्त किया।   



पंकज पोरवाल
भीलवाड़ा                 

Axact

Axact

Vestibulum bibendum felis sit amet dolor auctor molestie. In dignissim eget nibh id dapibus. Fusce et suscipit orci. Aliquam sit amet urna lorem. Duis eu imperdiet nunc, non imperdiet libero.

Post A Comment:

0 comments: