एस्ट्रो धर्म :
सिखों के पांचवें गुरु और शांति-धर्म के पुजारी गुरु अर्जुन देव बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। इन्होंने अपना पूरा जीवन समाज सेवा में व्यतीत किया। इसके लिए वह हमेशा संगत कार्य में लगे रहते थे। साथ ही ईश्वर की भक्ति भी किया करते थे। इनकी अमर गाथा आज भी पंजाब प्रांत के हर घर में सुनाई जाती है। इन्हें लोग देवत्व का रूप मानते हैं।
गुरु अर्जुन देव का जीवन परिचय
गुरु अर्जुन देव का जन्म 15 अप्रैल, 1563 को गोइंदवाल साहिब में हुआ था। इनके पिता का नाम गुरु राम दास था, जो कि सिख धर्म के चौथे गुरु थे। इनकी माता का नाम बीवी भानी था। गुरु अर्जुन देव को बचपन से ही धर्म-कर्म में रुचि थी। इन्हें अध्यात्म से बेहद लगाव था और समाज सेवा को यह सबसे बड़ा धर्म और कर्म मानते थे। महज 16 साल की उम्र में 1579 में इनकी शादी माता गंगा से हुई।
गुरु अर्जुन देव की रचनाएं
अर्जुन देव को साहित्य से भी अगाध स्नेह था। ये संस्कृत और स्थानीय भाषाओं के प्रकांड पंडित थे। इन्होंने कई गुरुवाणी की रचनाएं कीं, जो आदिग्रन्थ में संकलित हैं। इनकी रचनाओं को आज भी लोग गुनगुनाते हैं और गुरुद्वारे में कीर्तन किया जाता है।
गुरु अर्जुन देव पंचतत्व में विलीन
मुगलकाल में अकबर, गुरु अर्जुन देव के मुरीद थे, किन्तु अकबर के निधन के बाद जहांगीर के शासनकाल में इनके रिश्तों में खटास पैदा हो गई। ऐसा कहा जाता है कि शहजादा खुसरो को जब मुगल शासक जहांगीर ने देश निकाला का आदेश दिया। उस समय गुरु अर्जुन देव ने उन्हें शरण दी। इसी वजह से जहांगीर ने उन्हें मौत की सजा दी थी। गुरु अर्जुन देव ईश्वर को यादकर सभी यातनाएं सह गए और 30 मई, 1606 को पंचतत्व में विलीन हो गए। जीवन के अंतिम समय में उन्होंने यह अरदास की।
Axact

Axact

Vestibulum bibendum felis sit amet dolor auctor molestie. In dignissim eget nibh id dapibus. Fusce et suscipit orci. Aliquam sit amet urna lorem. Duis eu imperdiet nunc, non imperdiet libero.

Post A Comment:

0 comments: