ऐस्ट्रो धर्म :
ज्योतिष अर्थात ज्योति-विज्ञानं छह शास्त्रों में से एक है, इसे वेदों का नेत्र कहा गया है… ऐसी मान्यता है की वेदों का सही ज्ञान प्राप्त करने के लिए ज्योतिष में पारंगत होना आवश्यक है… महाप्रतापी त्रिलोकपति रावण जिसे चारो वेद कंठस्थ थे, ज्योतिष का सिद्ध ज्ञाता था.. उसने रावण संहिता जैसा ग्रंथ रचा था जिसके बल पर उसने शनी और यमराज तक को अपना दास बना लिया था… ज्योतिष ज्ञान से ही नारद त्रिकालज्ञ हुए.. भगवान कृष्ण, भीष्म पितामह, कर्ण आदि महान योद्धा भी ज्योतिष के अच्छे जानकर थे..
ब्रह्मा के मानस पुत्र भृगु ने भृगु-संहिता का प्रणयन किया. छठी शताब्दी में वरामिहिर ने वृहज्जातक, वृहत्सन्हिता और पंचसिद्धांतिका लिखी. सातवी सदी में आर्यभट ने ‘आर्यभटीय’ की रचना की जो खगोल और गणित की जानकारियाँ है… ऋषि पराशर रचित होरा शास्त्र ज्योतिष का सिद्ध ग्रन्थ है… नील कंठी वर्षफल देखने का एक अच्छा ग्रन्थ है… मुहूर्त देखने के लिए मुहूर्त चिंतामणि एक अच्छा ग्रन्थ है…भाव प्रकाश, मानसागरी, फलदीपिका, लघुजातकम, प्रश्नमार्ग भी बहुप्रचलित ग्रन्थ है… बाल बोध ज्योतिष, लाल किताब, सुनहरी किताब, काली किताब और अर्थ मार्तंड अच्छी पुस्तकें है… कीरो व बेन्ह्म जैसे अंग्रेज ज्योतिषियों ने भी हस्तरेखा ज्योतिष पर भी किताबें लिखी… नस्त्रेदाम्स की भविष्यवाणी विश्व प्रसिद्ध है…
पंचांग का ज्ञान——-
पंचांग दिन को नामंकित करने की एक प्रणाली है। पंचांग के चक्र को खगोलीय तत्वों से जोड़ा जाता है। बारह मास का एक वर्ष और 7 दिन का एक सप्ताह रखने का प्रचलन विक्रम संवत से शुरू हुआ। महीने का हिसाब सूर्य व चंद्रमा की गति पर रखा जाता है। गणना के आधार पर हिन्दू पंचांग की तीन धाराएँ हैं- पहली चंद्र आधारित, दूसरी नक्षत्र आधारित और तीसरी सूर्य आधारित कैलेंडर पद्धति। भिन्न-भिन्न रूप में यह पूरे भारत में माना जाता है। एक साल में 12 महीने होते हैं। प्रत्येक महीने में 15 दिन के दो पक्ष होते हैं- शुक्ल और कृष्ण। प्रत्येक साल में दो अयन होते हैं। इन दो अयनों की राशियों में 27 नक्षत्र भ्रमण करते रहते हैं।
पंचांग भारतवर्ष की ज्योतिष विधा का प्रमुख दर्पण है । जिससे समय की विभिन्न इकाईयों ज्ञान प्राप्त किया जाता है :- संवत्,महीना,पक्ष,तिथि,दिन आदि का विधाओ को जानने पंचांग एक मात्र साधन है । धार्मिक व सभी प्रकार शादी, मुण्डन,भवन निर्माण आदि तिथियों के समय पर अनुष्ठान का ज्ञान पंचांग द्वारा लगाया सकता है । काल रूपी ईश्वर के विशेष अगंभूत पंचांग है :- तिथि,नक्षत्र,योग,दिन के ज्ञान को सादर प्रणाम किया जाता है । आज इतना दैनिक में विशेष प्रचलित राशि फल ,ग्रह परिवर्तन, त्यौहार व व्रत आदि इसी पंचांग से देखा जाता है । प्राचीन काल में पंचांग के विशेष पांच अग है :- वार, तिथि, नक्षत्र, योग, करण थे । दिन-रात, सूर्य का अस्त-उदय, धडी पल और भारतीय समय का ज्ञान ,मौसम परिवर्तन भी इसीसे देखा जाता है
पंचांग के मुख्यत: तीन सिद्धान्त प्रयोग में लाये जाते हैं—-
सूर्य सिद्धान्त – अपनी विशुद्धता के कारण सारे भारत में प्रयोग में लाया जाता है।
आर्य सिद्धान्त – त्रावणकोर, मलावार, कर्नाटक में माध्वों द्वारा, मद्रास के तमिल जनपदों में प्रयोग किया जाता है, एवं ब्राह्मसिद्धान्त – गुजरात एवं राजस्थान में प्रयोग किया जाता है।
आर्य सिद्धान्त – त्रावणकोर, मलावार, कर्नाटक में माध्वों द्वारा, मद्रास के तमिल जनपदों में प्रयोग किया जाता है, एवं ब्राह्मसिद्धान्त – गुजरात एवं राजस्थान में प्रयोग किया जाता है।
—विशेष—-
—-ब्राह्मसिद्धान्त सिद्धान्त अब सूर्य सिद्धान्त सिद्धान्त के पक्ष में समाप्त होता जा रहा है। सिद्धान्तों में महायुग से गणनाएँ की जाती हैं, जो इतनी क्लिष्ट हैं कि उनके आधार पर सीधे ढंग से पंचांग बनाना कठिन है। अतः सिद्धान्तों पर आधारित ‘करण’ नामक ग्रन्थों के आधार पर पंचांग निर्मित किए जाते हैं, जैसे – बंगाल में मकरन्द, गणेश का ग्रहलाघव। ग्रहलाघव की तालिकाएँ दक्षिण, मध्य भारत तथा भारत के कुछ भागों में ही प्रयोग में लायी जाती हैं।
—-ब्राह्मसिद्धान्त सिद्धान्त अब सूर्य सिद्धान्त सिद्धान्त के पक्ष में समाप्त होता जा रहा है। सिद्धान्तों में महायुग से गणनाएँ की जाती हैं, जो इतनी क्लिष्ट हैं कि उनके आधार पर सीधे ढंग से पंचांग बनाना कठिन है। अतः सिद्धान्तों पर आधारित ‘करण’ नामक ग्रन्थों के आधार पर पंचांग निर्मित किए जाते हैं, जैसे – बंगाल में मकरन्द, गणेश का ग्रहलाघव। ग्रहलाघव की तालिकाएँ दक्षिण, मध्य भारत तथा भारत के कुछ भागों में ही प्रयोग में लायी जाती हैं।
सिद्धान्तों में अन्तर के दो महत्त्वपूर्ण तत्त्व महत्त्वपूर्ण हैं —–
वर्ष विस्तार के विषय में। वर्षमान का अन्तर केवल कुछ विपलों का है, और कल्प या महायुग या युग में चन्द्र एवं ग्रहों की चक्र-गतियों की संख्या के विषय में। यह केवल भारत में ही पाया गया है। आजकल का यूरोपीय पंचांग भी असन्तोषजनक है।
— ज्योतिष शास्त्र के महत्वपूर्ण भाग—-
१. पंचांग अध्ययन
२. कुंडली अध्ययन
३. वर्षफल अध्ययन
४. फलित ज्योतिष
५. प्रश्न ज्योतिष
६. हस्त रेखा ज्ञान
७. टैरो कार्ड ज्ञान
८. सामुद्रिक शास्त्र ज्ञान
९. अंक ज्योतिष
१०. फेंगशुई
११. तन्त्र मन्त्र यंत्र ज्योतिष आदि
२. कुंडली अध्ययन
३. वर्षफल अध्ययन
४. फलित ज्योतिष
५. प्रश्न ज्योतिष
६. हस्त रेखा ज्ञान
७. टैरो कार्ड ज्ञान
८. सामुद्रिक शास्त्र ज्ञान
९. अंक ज्योतिष
१०. फेंगशुई
११. तन्त्र मन्त्र यंत्र ज्योतिष आदि
पंचांग–
ज्योतिष सिखने के लिए पंचांग का ज्ञान होना परम आवश्यक है—- पंचांग अर्थात जिसके पाँच अंग है – तिथि, नक्षत्र, करण, योग, वार, इन पाँच अंगो के माध्यम से गृहों की चाल की गणित दर्शायी जाती है…
ज्योतिष सिखने के लिए पंचांग का ज्ञान होना परम आवश्यक है—- पंचांग अर्थात जिसके पाँच अंग है – तिथि, नक्षत्र, करण, योग, वार, इन पाँच अंगो के माध्यम से गृहों की चाल की गणित दर्शायी जाती है…
सौर मण्डल : —-
सौर मण्डल वह मंडल जिसमे हमारे सभी ग्रह सूर्य के एक निश्चित मार्ग पर पश्चिम से पूर्व दिशा की ओर सूर्य के गिर्द परिक्रमा करते रहते है ज्योतिस शास्त्र के अनुसार सौर परिवार बुध, शुक्र, पृथ्वी,चन्द्र ,मगंल, बृहस्पति ,शनियूरेनस, नेप्चून,प्लूटो |
सौर मण्डल वह मंडल जिसमे हमारे सभी ग्रह सूर्य के एक निश्चित मार्ग पर पश्चिम से पूर्व दिशा की ओर सूर्य के गिर्द परिक्रमा करते रहते है ज्योतिस शास्त्र के अनुसार सौर परिवार बुध, शुक्र, पृथ्वी,चन्द्र ,मगंल, बृहस्पति ,शनियूरेनस, नेप्चून,प्लूटो |
बुध सबसे छोटा ग्रह और सूर्य के सबसे ज्यादा नजदीक है । सभी ग्रह स्वंय प्रकशित नही होते व सूर्य से प्रकाश लेकर अपनी कक्षा में सूर्य के गिर्द च्रक लगाते है । सूर्य से हमे प्रकाश,शक्ति, गर्मी,और जीवन मिलता है इस प्रकाश को पृथ्वी पर पहुँचने में साढ़े आठ मिनट लगभग है ।
पृथ्वी को सूर्य के गिर्द घूमते लगभग सवा 365 दिन लगते है तब एक चक्कर पूरा होता है । बुध को 88 दिन में चककर लगाता है । शुक्र 225 दिनों में, मंगल 687 दिनों में, बृहस्पति लगभग पौने बारह वर्षो में, शनि साढ़े 29 वर्षो में, यूरेनस 84 वर्षो में, नेपचून 165 वर्षो में, प्लूटो 248 वर्षो एवं 5 मासो में सूर्य के गिर्द परिक्रमा पूरा करता है । सभी ग्रह अपने पथ पर क्रान्तिवृत से 7-8 दक्षिणोत्तर होकर सूर्य की परिक्रमा कर रहे है|
उपग्रह हमेशा अपने ग्रहो के गिर्द घूमते है । पृथ्वी हमेशा सूर्य के गिर्द घूमती है । इस लिए आकाश गतिशील स्थिति में रहता है । यह गति लगभग 30 किलोमीटर प्रति सेकेन्ड है ।
काल विभाजन—–
सूर्य के किसी स्थिर बिंदु (नक्षत्र) के सापेक्ष पृथ्वी की परिक्रमा के काल को सौर वर्ष कहते हैं। यह स्थिर बिंदु मेषादि है। ईसा के पाँचवे शतक के आसन्न तक यह बिंदु कांतिवृत्त तथा विषुवत् के संपात में था। अब यह उस स्थान से लगभग 23 पश्चिम हट गया है, जिसे अयनांश कहते हैं। अयनगति विभिन्न ग्रंथों में एक सी नहीं है। यह लगभग प्रति वर्ष 1 कला मानी गई है। वर्तमान सूक्ष्म अयनगति 50.2 विकला है। सिद्धांतग्रथों का वर्षमान 365 दिo 15 घo 31 पo 31 विo 24 प्रति विo है। यह वास्तव मान से 8। 34। 37 पलादि अधिक है। इतने समय में सूर्य की गति 8.27″ होती है। इस प्रकार हमारे वर्षमान के कारण ही अयनगति की अधिक कल्पना है। वर्षों की गणना के लिये सौर वर्ष का प्रयोग किया जाता है। मासगणना के लिये चांद्र मासों का। सूर्य और चंद्रमा जब राश्यादि में समान होते हैं तब वह अमांतकाल तथा जब 6 राशि के अंतर पर होते हैं तब वह पूर्णिमांतकाल कहलाता है। एक अमांत से दूसरे अमांत तक एक चांद्र मास होता है, किंतु शर्त यह है कि उस समय में सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में अवश्य आ जाय। जिस चांद्र मास में सूर्य की संक्रांति नहीं पड़ती वह अधिमास कहलाता है। ऐसे वर्ष में 12 के स्थान पर 13 मास हो जाते हैं। इसी प्रकार यदि किसी चांद्र मास में दो संक्रांतियाँ पड़ जायँ तो एक मास का क्षय हो जाएगा। इस प्रकार मापों के चांद्र रहने पर भी यह प्रणाली सौर प्रणाली से संबद्ध है। चांद्र दिन की इकाई को तिथि कहते हैं। यह सूर्य और चंद्र के अंतर के 12वें भाग के बराबर होती है। हमारे धार्मिक दिन तिथियों से संबद्ध है1 चंद्रमा जिस नक्षत्र में रहता है उसे चांद्र नक्षत्र कहते हैं। अति प्राचीन काल में वार के स्थान पर चांद्र नक्षत्रों का प्रयोग होता था। काल के बड़े मानों को व्यक्त करने के लिये युग प्रणाली अपनाई जाती है। वह इस प्रकार है:
कृतयुग (सत्ययुग) 17,28,000 वर्ष
द्वापर 12,96,000 वर्ष
त्रेता 8, 64,000 वर्ष
कलि 4,32,000 वर्ष
योग महायुग 43,20,000 वर्ष
कल्प 1000 महायुग 4,32,00,00,000 वर्ष
सूर्यसिद्धांत में बताए आँकड़ों के अनुसार कलियुग का आरंभ 17 फ़रवरी 3102 ईo पूo को हुआ था। युग से अहर्गण (दिनसमूहों) की गणना प्रणाली, जूलियन डे नंबर के दिनों के समान, भूत और भविष्य की सभी तिथियों की गणना में सहायक हो सकती है।
द्वापर 12,96,000 वर्ष
त्रेता 8, 64,000 वर्ष
कलि 4,32,000 वर्ष
योग महायुग 43,20,000 वर्ष
कल्प 1000 महायुग 4,32,00,00,000 वर्ष
सूर्यसिद्धांत में बताए आँकड़ों के अनुसार कलियुग का आरंभ 17 फ़रवरी 3102 ईo पूo को हुआ था। युग से अहर्गण (दिनसमूहों) की गणना प्रणाली, जूलियन डे नंबर के दिनों के समान, भूत और भविष्य की सभी तिथियों की गणना में सहायक हो सकती है।
समय की निशिचत आधार होता है । सयम का आधार सूर्य ही है । यह समय ही सूर्य के वश चक्रवत परिवतिर्त होता है । मनुष्य के सुख-दुःख, और जीवन -मरण काल पर आधरित होता है और उसी में लीन हो जाता है । भच्रक में भ्रमण करते हुए सूर्य के एक च्रक को एक वर्ष की संज्ञा दी जाती है । समय का विभाजन धण्टे,मिनट और सेंकिड है ज्योतिष विज्ञानं के रूप अहोरात्र,दिन,घड़ी,पल,विपल आदि है । हिन्दुओं में समय का बटवारा एक विशेष प्रणाली से होता है । यह ततपर से आरम्भ और कल्प पर समाप्त होता है । एक कल्प 4,32,0 000,000 सम्पात वर्षों के बराबर होता है । हिन्दुओं में एक दिन सूर्य उदय से अगले सूर्य उदय पर समाप्त होता है ।
१ पलक छपकना – 1 निमेष
३ निमेष – १ क्षण
५ क्षण – १ काष्ठ
१५ काष्ठा – १ लधु
१५ लधु – १ घटी (24 मिनट )
२ -१/२ घटी – १ घंटा
६० घटी – २४ घण्टे
२ घटी = १ मुहूर्त
३० मुहूर्त = 1 दिन-रात यानि अहोरात
१ याम = एक दिन का चौथा हिस्सा ( 1 प्रहर )
8 प्रहर = 1 दिन -रात
7 दिन -रात = 1 सप्ताह
4 सप्ताह = 1 महीना
12 मास = 1 वर्ष (365 -366 दिनो)
घण्टो- मिनटों को हिन्दुओ धर्मशास्त्र के अनुसार पलों में परिवर्तन करना और उन नियम अनुसार देखना :-
1 मिनट – 2 -1/2 पल
4 मिनट – 10 पल
12 मिनट- 30 पळ
24 मिनट – 1 घटी
60 मिनट – 60 घटी यानि 1 घण्टा
१ पलक छपकना – 1 निमेष
३ निमेष – १ क्षण
५ क्षण – १ काष्ठ
१५ काष्ठा – १ लधु
१५ लधु – १ घटी (24 मिनट )
२ -१/२ घटी – १ घंटा
६० घटी – २४ घण्टे
२ घटी = १ मुहूर्त
३० मुहूर्त = 1 दिन-रात यानि अहोरात
१ याम = एक दिन का चौथा हिस्सा ( 1 प्रहर )
8 प्रहर = 1 दिन -रात
7 दिन -रात = 1 सप्ताह
4 सप्ताह = 1 महीना
12 मास = 1 वर्ष (365 -366 दिनो)
घण्टो- मिनटों को हिन्दुओ धर्मशास्त्र के अनुसार पलों में परिवर्तन करना और उन नियम अनुसार देखना :-
1 मिनट – 2 -1/2 पल
4 मिनट – 10 पल
12 मिनट- 30 पळ
24 मिनट – 1 घटी
60 मिनट – 60 घटी यानि 1 घण्टा
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार समय :-
60 विकला = 1 कला
60 कला = 1 अंश
30 अंश = 1 राशि
12 राशि = मगण
60 विकला = 1 कला
60 कला = 1 अंश
30 अंश = 1 राशि
12 राशि = मगण
सूर्योदय से सूर्यास्त तक = एक दिन या दिनमान
सूर्यास्त अगले दिन सूर्योदय = रात्रिमान
उषाकाल = सूर्याद्य से 8 घटी पहले
प्रात:काल = सूर्यादय से 3 घटी तक
संध्याकाल =सूर्यास्त से 3 घटी तक
सूर्यास्त अगले दिन सूर्योदय = रात्रिमान
उषाकाल = सूर्याद्य से 8 घटी पहले
प्रात:काल = सूर्यादय से 3 घटी तक
संध्याकाल =सूर्यास्त से 3 घटी तक
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