आचार्य रणजीत स्वामी
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विश्व की अत्यंत पुरातन संस्कृति के स्वरूप में आज वैदिक संस्कृति की मान्यता है। वेद काल में सर्वप्रथम ऋग्वेद का निर्माण हुआ। तत्पश्चात् यजुर्वेद सामवेद और अंत में अथर्ववेद की उत्पति हुई। वैदिक संस्कृति में कहा जाता है की वेद वाङ्गमय अपौरुषेय हैं। अर्थात् हजारों साल पहले लिखे वेद का तत्वज्ञान आज के समय में भी उतना ही मान्य है जितना वेदकाल में था।


वेदकर्ता ऋषि मुनि ने वेद मन्त्र में ही अनेक प्रतीक की उपासना का विवरण किया हैं। उन सब वैदिक प्रतीक में स्वस्तिक चिन्ह का अनन्य साधारण महत्व है। प्राचीन काल से स्वस्तिक को संस्कृति में मांगल्य का प्रतीक माना जाता है। इसीलिए किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले स्वस्तिक चिह्न अंकित करके उसका पूजन किया जाता है। स्वस्तिक शब्द सु+अस+क से बना है। ‘सु’ का अर्थ अच्छा, ‘अस’ का अर्थ ‘अस्तित्व’ और ‘क’ का अर्थ ‘कर्त्ता’ या करने वाले से है। इस प्रकार ‘स्वस्तिक’ शब्द का अर्थ हुआ ‘अच्छा’ या ‘मांगल्य उत्पन्न करने वाला।


किसी भी पूजा में कलश पूजन किया जाता है जिसे स्वस्ति पुण्याह वाचन भी कहते हैं। इस पुण्याह वाचन में 5 प्रकार के आशीष की अभिलाषा यजमान द्वारा की जाती है :—

1 पुण्य – मैं जो वैदिक पूजन का आचरण कर रहा हूँ उससे मुझे दिशा से पुण्य की प्राप्ति ही हो।

2 कल्याणम् – पूजा आचरण से मेरा कल्याण हो।

3 ऋद्धिम   – मेरे कार्यक्षेत्र की वृद्धि हो।

4 स्वस्ति   – सभी दिशाओं में सबका कल्याण हो। सब को आरोग्य की प्राप्ति हो।

5 श्री:     – घर में सुलक्ष्मी की प्राप्ति हो।

इस प्रकार ‘स्वस्तिक’ शब्द में सम्पूर्ण विश्व के कल्याण या ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की भावना निहित है।

स्वस्तिक में एक दूसरे को काटती हुई दो सीधी रेखाएँ होती हैं, जो आगे चलकर मुड़ जाती हैं। इसके बाद भी ये रेखाएँ अपने सिरों पर थोड़ी और आगे की तरफ मुड़ी होती हैं। अर्थात् दक्षिण के उत्तर की ओर जानेवाली यह रेखा होती है। प्रदिक्षणा क्रम से अर्थात पृथ्वी की पॉजिटिव मैग्नेटिक फिल्ड को दर्शाती ये रेखा से स्वस्तिक चिन्ह का निर्माण किया जाता है।

स्वास्तिक चिन्ह भी है, चक्र भी है और यंत्र भी है…

इसे वास्तु मानसं ग्रन्थ में असुरांतक चक्र भी कहा गया हैं। सभी प्रकार की असुरी शक्ति को स्वस्तिक क्षीण करता हैं। इसीलिए वास्तु शांति में मुख्य द्वार पर ही स्वस्तिक की स्थापना की जाती है। सिद्धान्त सार ग्रन्थ में स्वस्तिक को विश्व ब्रम्हांड का प्रतीक भी माना गया है।

मंगलकारी प्रतीक चिन्ह स्वस्तिक अपने आप में विलक्षण है। यह मांगलिक स्वस्तिक चिन्ह अनादि काल से सम्पूर्ण सृष्टि में व्याप्त रहा है। धन, वैभव और ऐश्वर्य की देवी लक्ष्मी के साथ भी शुभ लाभ, स्वस्तिक की पूजा दीपावली के पावन अवसर पर की जाती है। ज्योतिष शास्त्र में जातक की कुण्डली बनाते समय स्वस्तिक चिन्ह में ही 12 घर बनाकर ग्रह अंकित किये जाते हैं।

चारों वेद में स्वस्तिक का मन्त्र दिया है। स्वस्ति मन्त्र शुभ और शांति के लिए प्रयुक्त होता है। स्वस्ति अर्थात सु-अस्ति-मांगल्य की उत्पत्ति हो तथा सब का कल्याण हो।

पूजा आरम्भ में मंत्रोच्चार करते हुए यजमान के भाल प्रदेश आज्ञा चक्र पर चंदन से स्वस्ति तिलक किया जाता हैं। क्योंकि मन्त्र उच्चारण में उत्पन्न होने वाली उच्च स्पंद शक्ति (हाई इलेट्रो मैग्नेटिक फिल्ड) से कोई बाधा न हो और यजमान की ग्रहण शक्ति अनुसार सौम्यता की प्राप्ति हो।

स्वस्ति मन्त्र का पाठ करने की क्रिया ‘स्वस्तिवाचन’ कहलाती है। आशीर्वाद में भी यह स्वस्ति मन्त्र आता है। जिसके उच्चारण से अक्षत यजमान पर डाली जाती हैं।

स्वस्ति मन्त्र-

ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः।स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः।स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः।स्वस्ति नो ब्रिहस्पतिर्दधातु ॥ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥

स्वस्तिक के प्रभावी और लाभदायक उपाय :—

1) घर के मुख्य द्वार पर चंदन और केसर से मंगलवार के दिन स्वस्तिक चिन्ह घर की लक्ष्मी अंकित करे।

2) दक्षिण दिशा में मुख्य द्वार हो तो नवरत्न जड़ित स्वस्तिक यंत्र या स्वस्तिक प्लेट लगाएं।

3) घर में बार बार कोई बीमार पड़ता है हो शनिवार को हनुमान जी के चरणों में अर्पित सिन्दूर से मुख्य द्वार की अंदर की बाजु में द्वार पर स्वस्तिक चिन्ह अंकित करें।

4) पिरामिड युक्त स्वस्तिक चिन्ह घर में रखने से वास्तु दोष का निवारण होता है।

5) शुक्रवार को या शुक्ल अष्टमी को भुजपत्र पर गोरोचन चंदन तथा केसर से स्वस्तिक चिन्ह का निर्माण कर के बच्चों की रूम में या बैग में रखे। बच्चे तेज गति से पढाई करेंगे।

6) अगर ईशान कोण में बाथरूम हो तो कॉपर का स्वातिक गुरुवार के दिन बीम पर लगाये।

7) वास्तु के नव निर्माण से पूर्व जमीन के ब्रह्म स्थान पर केसर सिन्दूर और पारा(मर्क्युरी) से स्वस्तिक चिन्ह बनाये। जमीन संबंधी भू दोष का निवारण होगा।

8) कोर्ट कार्य से पहले सफेद कागज पर केशरी स्वस्तिक बनाये और अपने पास में रखें। कार्य में सफलता मिलेगी।

9) भगवान की पूजा से पहले आसन के नीचे स्वस्तिक बनाएं। पूजा में नियमितता आएगी। ध्यान भटकेगा नहीं।


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