टोंक जिले के बीसलपुर बांध के पास प्राकृतिक वातावरण मे मौजूद प्राचीन शिवलिंग
टोंक,। टोंक मे बनास नदी के तट पर बीसलपुर बांध के पास मौजूद एक ऐसा मन्दिर है जों प्राकृतिक वातावरण और पौराणिक इतिहास का गवाह है, क्योंकि यहां पर भगवान शिव के सबसे बडे भक्त दशानन रावण ने हजारों साल भगवान शिव की तपस्या कर ऐश्वर्य का वरदान प्राप्त किया था, बीसलपुर बांध के त्रिवेणी संगम पर मौजूद यह मन्दिर ना सिर्फ लोगो को अपनी ओर आकृर्षित करता है बल्कि इसकी आस-पास का वातावरण किसी पर्यटन स्थल से कम नही है, यही कारण है कि यहां पर सालभर लोगो को आना-जाना रहता है। हमारे धर्म प्रधान देश मे देवपूजा का इतिहास काफी प्राचीन है
, यू तों देश के कोने-कोने देवपूजा अलग-अलग स्वरूपो मे मौजूद, लेकिन जिन स्थानो मे पुरातन स्थान है, उनका सर्वाधिक एवं विशेष महत्व है, यू तों पूरे संसा में भगवान शिव के असंख्य ज्योर्तिलिंग परन्तु प्रमुख रूप से 12 ज्योर्तिलिंग है, इनके अलावा 108 उप ज्योर्तिलिंग है, जिसमे से गोकर्णेश्वर (महाबलेश्वर) का प्रमुख है, टोंक जिलें के बीसलपुर बांध के पास स्थित गोकर्णेष्वर महादेव का मन्दिर प्राचीन काल से बना हुआ है जहां की कहानी भगवान शिव के महान भक्तों माने जाने वाले दशानन रावण से जुडी है, यही पर रावण ने हजारो सालों तक कठिन अराधना की थी, तपस्या के बाद और आत्मलिंग के रूप में भगवान शिव का शिवलिंग प्राप्त कर जाने लगा तो देवताओं के छल के कारण उसे तीव्र लघुशंका हुई और उसने शिवलिंग धरती पर रख दिया जिससे शिवलिंग यहीं पर स्वयंभू हो गया, इसलिये स्वयंभू भी कहा जाता है क्योंकि बिना किसी द्वारा स्थापित किये बगैर यहा विराजित हो गए, जिसके बाद हर साल श्रावण मास मे रावण कांवड मे पवित्र नदियों का जल लेकर यहां भगवान शिव की अराधना करने आता था,
कहते है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन बनास नदी के तट पर स्थित गौकर्णेष्वर महादेव के पवित्र दह में हजारों लोग पवित्र स्नान कर सारे पाप से मुक्ति मिल पाते है, जबकि श्रावण मास मे यहां पर पूरे महिने काफी चहल-पहल रहती है। यहां पर मौजूद शिवलिंग को गौकर्णेश्वर कहने की कथा भी दिलचस्प है विद्वानों के अनुसार बीसलपुर बांध के स्थित गौकर्णेष्वर महादेव के मंदिर का पौराणिक महत्व है, जिससे के तहत महात्मा गौकर्ण के नाम पर भी इस स्थान का नाम गौकर्णेश्वर महादेव कहा जाता है, बताया जाता है कि महात्मा गौकर्ण ने अपने भ्राता धुन्धकारी को मोक्ष की प्राप्ति के लिए यहां एक सप्ताह की श्रीमद्भागवत का श्रवण करवाया था, इसलिये यह पवित्र स्थान मोक्षदायी भी माना जाता है, जहां लोग अपने पुर्वजों की अस्थियां भी यहां प्रवावित कर दान पुण्य करते, वही त्रिवेणी संगत होने के कारण यह स्थान पुजनीय है, क्योंकि पुराणों मे कहा गया है कि जहां तीन नदियों मिलती है वह स्वत: ही तीर्थ बन जाता है। विद्वानों मे माने तो बीसलपुर बांध मजबूती से खडे रहने मे भी गोकर्णेश्वर महादेव का आर्शिवाद है, जिस कारण है कारण से यहां आज भी मजबूती से खडा है। कहा जाता है सतयुग मे इसका रंग स्वेत था कलयुग मे लोगो बढते पाप के कारण धीरे-धीरे इनका रंग श्याम वरण होने लगा है। जहां पौराणिक स्थल होने के कारण गौकर्णेष्वर महादेव का मंदिर लोगों की आस्था का केंद्र है, वही बीसलपुर बांध होने के कारण यह एक पर्यटन का केन्द्र भी है जिस कारण प्रतिवर्ष देषी व विदेषी सैलानी भी घूमने के लिए आते है, कहते है कि रावण एक महान ज्ञानी था पर एक गलती ने उसका वंश सहित नाश कर दिया पर फिर भी लोग रावण का विद्वान के तौर पर सम्मान देते ही है, श्रद्धालूओं के अनुसार यहां पर भगवान शिव के दर्शन करने के साथ वह रावण की तपस्या स्थली को देखने भी आते है, यहां आने वाले आमजन ही नही कई जनप्रतिनिधि और संगठनों से जुडे लोग यहां पर भक्ति भाव से आते है और मनमानी मुराज पूरी करवाते है, वही पास ही मे रावण की कुलदेवी निकुम्भला माता का मन्दिर है, जिसके आस-पास सुन्दर वातावरण हैं। करीब दो दशक पूर्व गोकर्णेश्वर महादेव मन्दिर के सामने बीसलपुर बांध का निर्माण करवाया गया था, जिसके बाद से यहां पर पर्यटन के दृष्टिकोण से और भी ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया, धार्मिक महत्व तो प्राचीन रहा है इस प्रसिद्ध स्थल की सबसे बडी विडम्बना यह है कि यहां आवागमन के साधनों की भारी किल्लत है और स्थल की सुविधाओं की बात की जाय तो यहां रात्रि में ठहरने के लिए किसी प्रकार व्यवस्था नहीं है, सफाई के दृष्टिकोण से भी यहां के प्रशासन का कोई ध्यान नहीं है जबकि बांध के पानी से राजस्थान की राजधानी जयपुर सहित अजमेर और आधा दर्जन से ज्यादा जिलों के हलक तर होते हैं, बीसलपुर क्षेत्र और गाकर्णेश्वर महादेव की आस-पास भोगोगिक वातावरण पर्यटन के हिसाब बिलकुल उपयुक्त है और मन्दिर के सामने मौजूद दह जहां पर श्रद्धालू स्थान कर पुण्य कमाते है वहां पर बोटिंग की व्यवस्था भी मौजूद है, प्रशासन भी लम्बे समय से इसको पर्यटन के मानचित्र लाने के दावे तो करता है लेकिन अभी तक कोई ठोस कार्यवाही नहीं हो पाई है। गौकर्णेश्वर की प्रसिद्धी सुन यहां आने वाले यही शिकायत करते नजर आते है कि यहां सुविधाओं और सुरक्षा का अभाव है, जिसकों दुरूस्त किया जाना है चाहिये। पर्यटन के क्षेत्र में भले ही राजस्थान को दूसरा दर्जा मिला हो लेकिन राजस्थान में पर्यटन की भरपूर संभावनाओं से कतई इंकार नहीं किया जा सकता, गौकर्णेश्वर महादेव मन्दिर मे आने वाले श्रद्धालू भले ही बीसलपुर बांध और मन्दिर के आस-पास के क्षेत्र कों पर्यटन पर लाने की बात करते हुये पर राजनैतिक इच्छा शक्ति और प्रशासनिक उपेक्षा के शिकार होने के कारण अभी तक पर्यटन का दर्जा पाने से महरूम है। पूर्व सरकार द्वारा बीसलपुर वन क्षेत्र को कन्जर्वेशन रिजर्व भी घोषित किया गया था, जिसका कार्य भी शुरू होने से पूर्व ही खत्म हो गया और फिर से इसे पर्यटन पटल पर लाने की आवाज उठने लगी है।
गौरव चतुर्वेदी
देवली
टोंक,। टोंक मे बनास नदी के तट पर बीसलपुर बांध के पास मौजूद एक ऐसा मन्दिर है जों प्राकृतिक वातावरण और पौराणिक इतिहास का गवाह है, क्योंकि यहां पर भगवान शिव के सबसे बडे भक्त दशानन रावण ने हजारों साल भगवान शिव की तपस्या कर ऐश्वर्य का वरदान प्राप्त किया था, बीसलपुर बांध के त्रिवेणी संगम पर मौजूद यह मन्दिर ना सिर्फ लोगो को अपनी ओर आकृर्षित करता है बल्कि इसकी आस-पास का वातावरण किसी पर्यटन स्थल से कम नही है, यही कारण है कि यहां पर सालभर लोगो को आना-जाना रहता है। हमारे धर्म प्रधान देश मे देवपूजा का इतिहास काफी प्राचीन है
, यू तों देश के कोने-कोने देवपूजा अलग-अलग स्वरूपो मे मौजूद, लेकिन जिन स्थानो मे पुरातन स्थान है, उनका सर्वाधिक एवं विशेष महत्व है, यू तों पूरे संसा में भगवान शिव के असंख्य ज्योर्तिलिंग परन्तु प्रमुख रूप से 12 ज्योर्तिलिंग है, इनके अलावा 108 उप ज्योर्तिलिंग है, जिसमे से गोकर्णेश्वर (महाबलेश्वर) का प्रमुख है, टोंक जिलें के बीसलपुर बांध के पास स्थित गोकर्णेष्वर महादेव का मन्दिर प्राचीन काल से बना हुआ है जहां की कहानी भगवान शिव के महान भक्तों माने जाने वाले दशानन रावण से जुडी है, यही पर रावण ने हजारो सालों तक कठिन अराधना की थी, तपस्या के बाद और आत्मलिंग के रूप में भगवान शिव का शिवलिंग प्राप्त कर जाने लगा तो देवताओं के छल के कारण उसे तीव्र लघुशंका हुई और उसने शिवलिंग धरती पर रख दिया जिससे शिवलिंग यहीं पर स्वयंभू हो गया, इसलिये स्वयंभू भी कहा जाता है क्योंकि बिना किसी द्वारा स्थापित किये बगैर यहा विराजित हो गए, जिसके बाद हर साल श्रावण मास मे रावण कांवड मे पवित्र नदियों का जल लेकर यहां भगवान शिव की अराधना करने आता था,
कहते है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन बनास नदी के तट पर स्थित गौकर्णेष्वर महादेव के पवित्र दह में हजारों लोग पवित्र स्नान कर सारे पाप से मुक्ति मिल पाते है, जबकि श्रावण मास मे यहां पर पूरे महिने काफी चहल-पहल रहती है। यहां पर मौजूद शिवलिंग को गौकर्णेश्वर कहने की कथा भी दिलचस्प है विद्वानों के अनुसार बीसलपुर बांध के स्थित गौकर्णेष्वर महादेव के मंदिर का पौराणिक महत्व है, जिससे के तहत महात्मा गौकर्ण के नाम पर भी इस स्थान का नाम गौकर्णेश्वर महादेव कहा जाता है, बताया जाता है कि महात्मा गौकर्ण ने अपने भ्राता धुन्धकारी को मोक्ष की प्राप्ति के लिए यहां एक सप्ताह की श्रीमद्भागवत का श्रवण करवाया था, इसलिये यह पवित्र स्थान मोक्षदायी भी माना जाता है, जहां लोग अपने पुर्वजों की अस्थियां भी यहां प्रवावित कर दान पुण्य करते, वही त्रिवेणी संगत होने के कारण यह स्थान पुजनीय है, क्योंकि पुराणों मे कहा गया है कि जहां तीन नदियों मिलती है वह स्वत: ही तीर्थ बन जाता है। विद्वानों मे माने तो बीसलपुर बांध मजबूती से खडे रहने मे भी गोकर्णेश्वर महादेव का आर्शिवाद है, जिस कारण है कारण से यहां आज भी मजबूती से खडा है। कहा जाता है सतयुग मे इसका रंग स्वेत था कलयुग मे लोगो बढते पाप के कारण धीरे-धीरे इनका रंग श्याम वरण होने लगा है। जहां पौराणिक स्थल होने के कारण गौकर्णेष्वर महादेव का मंदिर लोगों की आस्था का केंद्र है, वही बीसलपुर बांध होने के कारण यह एक पर्यटन का केन्द्र भी है जिस कारण प्रतिवर्ष देषी व विदेषी सैलानी भी घूमने के लिए आते है, कहते है कि रावण एक महान ज्ञानी था पर एक गलती ने उसका वंश सहित नाश कर दिया पर फिर भी लोग रावण का विद्वान के तौर पर सम्मान देते ही है, श्रद्धालूओं के अनुसार यहां पर भगवान शिव के दर्शन करने के साथ वह रावण की तपस्या स्थली को देखने भी आते है, यहां आने वाले आमजन ही नही कई जनप्रतिनिधि और संगठनों से जुडे लोग यहां पर भक्ति भाव से आते है और मनमानी मुराज पूरी करवाते है, वही पास ही मे रावण की कुलदेवी निकुम्भला माता का मन्दिर है, जिसके आस-पास सुन्दर वातावरण हैं। करीब दो दशक पूर्व गोकर्णेश्वर महादेव मन्दिर के सामने बीसलपुर बांध का निर्माण करवाया गया था, जिसके बाद से यहां पर पर्यटन के दृष्टिकोण से और भी ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया, धार्मिक महत्व तो प्राचीन रहा है इस प्रसिद्ध स्थल की सबसे बडी विडम्बना यह है कि यहां आवागमन के साधनों की भारी किल्लत है और स्थल की सुविधाओं की बात की जाय तो यहां रात्रि में ठहरने के लिए किसी प्रकार व्यवस्था नहीं है, सफाई के दृष्टिकोण से भी यहां के प्रशासन का कोई ध्यान नहीं है जबकि बांध के पानी से राजस्थान की राजधानी जयपुर सहित अजमेर और आधा दर्जन से ज्यादा जिलों के हलक तर होते हैं, बीसलपुर क्षेत्र और गाकर्णेश्वर महादेव की आस-पास भोगोगिक वातावरण पर्यटन के हिसाब बिलकुल उपयुक्त है और मन्दिर के सामने मौजूद दह जहां पर श्रद्धालू स्थान कर पुण्य कमाते है वहां पर बोटिंग की व्यवस्था भी मौजूद है, प्रशासन भी लम्बे समय से इसको पर्यटन के मानचित्र लाने के दावे तो करता है लेकिन अभी तक कोई ठोस कार्यवाही नहीं हो पाई है। गौकर्णेश्वर की प्रसिद्धी सुन यहां आने वाले यही शिकायत करते नजर आते है कि यहां सुविधाओं और सुरक्षा का अभाव है, जिसकों दुरूस्त किया जाना है चाहिये। पर्यटन के क्षेत्र में भले ही राजस्थान को दूसरा दर्जा मिला हो लेकिन राजस्थान में पर्यटन की भरपूर संभावनाओं से कतई इंकार नहीं किया जा सकता, गौकर्णेश्वर महादेव मन्दिर मे आने वाले श्रद्धालू भले ही बीसलपुर बांध और मन्दिर के आस-पास के क्षेत्र कों पर्यटन पर लाने की बात करते हुये पर राजनैतिक इच्छा शक्ति और प्रशासनिक उपेक्षा के शिकार होने के कारण अभी तक पर्यटन का दर्जा पाने से महरूम है। पूर्व सरकार द्वारा बीसलपुर वन क्षेत्र को कन्जर्वेशन रिजर्व भी घोषित किया गया था, जिसका कार्य भी शुरू होने से पूर्व ही खत्म हो गया और फिर से इसे पर्यटन पटल पर लाने की आवाज उठने लगी है।
गौरव चतुर्वेदी
देवली
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