देवकिशन राजपुरोहित
वस्तुओं का संग्रह करने के विविध प्रकार के शौक हंै, कोई भिन्न-भिन्न समाचार पत्रों के शीर्षकों का संकलन करता हैं, तो कोई माचिस की डिब्बियों का संग्रह करता हंै। कोई चित्रों का संग्रह करता हंै।इसी कड़ी में कई लोग पुराने सिक्कों का संकलन करते हंै। अपने घर पर संदूकची में रखते है और आने जाने वालों को बताते भी हैं। सिक्कों का संग्रह बहुत ही महंगा होता हंै। जितना पुराना सिक्का, उसकी उतनी ही अधिक राषि लगती हंै। इस तरह की महंगी और ऐतिहासिक रूचि रखने वालों में भंवरलाल राजपुरोहित सहायक कर्मचारी राजकीय सीनियर सैकेण्डरी स्कूल श्रीविजयनगर एक चलता फिरता मोबाईल म्युजियम है। जिनके पास सैंकड़ो दुर्लभ सिक्के है। जिन्हे वे अपने सिंदूकचीयों मंे स्थान-स्थान पर स्कूलों, काॅलेजांे व मैलों में प्रदर्षित करते है।
हाल ही में एक नाम उभरकर सामने आया है बीकानेर जिले के नोखा निवासी ओमप्रकाष गट्टाणी का, जिन्होने अनेक देषों के सिक्कों व भारत की स्वतंत्रता से पूर्व की पूरे भारत की रियासतों के सिक्कों का संकलन किया है। जिसमें सोने, चांदी, तांबे, पीतल, एल्युम्यूनियम के प्राचीनतम सिक्के उपलब्ध हंै। गट्टाणी ने इन सिक्कों को किसी संदूकची में बंद करना उचित नहीं समझा। उन्होने नोखा- नागौर रोड़ पर एक भव्य म्यूजियम ‘ओमजी कोईन क्यूरीई कलेक्षन’ बनवाकर शीषे के शो-केसों में तरतीब से भवन के अंदर टेबलों पर सजाकर रखा है। सिक्कों और प्रचलित मुद्रा में कुछ ऐसे दुर्लभ नोट भी है जिनकी हमें तो क्या बड़े बड़ों को भी जानकारी नहीं है। क्या आपने कभी ढाई रूपये, चार रूपये और सोलह रूपये के नोट देखे या सुने हैं? मैने तो कभी ऐसे नोटांे की कल्पना भी नहीं की थी, किन्तु यहां उपरोक्त तीनांे नोट सुरक्षित अवलोकित किए है। आष्चर्यजनक है यह म्यूजियम, जहां रिजर्व बैंक आॅफ इण्डिया के दस हजार एवं पांच हजार के नोट भी प्रदर्षित किये गये है।
सिक्कों की कहानी
स्वतंत्रता के समय देष में ब्रिटिष शासनकाल के सबसे छोटा सिक्का ताम्बे की पाई थी। एक पैसे में तीन पाई होती थी। ताम्बे का एक पैसा का सिक्का होता था। जिसके बीच में छेद था। पीतल के बन्ने सिक्के में अधन्नी, इकन्नी, पीतल की निकल पालिसयुक्त दो अन्नी, चांदी की चवन्नी, अठन्नी और रूपया प्रचलन में था।
उस जमाने में एक रूपये में 192 पाई, 64 पैसे, 32 अधन्नी, 16 आने, चार चव्वनी और दो अठन्नी थी। सिककों पर गेंहू की बाली, घोड़ा, बैल आदि उकेरा जाता था और एक तरफ तत्कालीन शासक का चित्र व नाम होता था। हमारा संविधान 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ, उसके बाद तत्कालीन शासकों के स्थान पर अषोक स्तम्भ उकेरा जाने लगा जो अद्यतन जारी है। 1957 मंे दषमलव प्रणाली के सिक्के जारी किये। पुराने भी प्रचलन्न में थे अतः दषमलव प्रणाली के सिक्कों को नया पैसा, आदि नाम से ढलवाया गया। वर्ष 1964 तक नया पैसा पूर्ण अस्तित्व में आ गया और पुराने सिक्के लुप्त होते गये तब 1964 में नया पैसा की जगह पैसा छापा जाने लगा। इस समय दो पैसे, पांच पैसे, दस पैसे, पच्चीस पैसे, पचास पैसे, व एक रूपये के सिक्के ढले। इस समय चांदी लुप्त हो गई। एक पैसा ताम्बे का और बाकी सिक्के निकल के बने थे। इसी वर्ष तीन पैसे का एल्युनिमियम का सिक्का भी निकाला गया। एक पैसा व दो पैसा भी इस वर्ष एल्युमिनियम के ढाले गये। आकार भी चैकोर कर दिया गया। वर्ष 1967 में पांच पैसे का सिक्का भी एल्युमिनियम का ढलाने लगा। इसी वर्ष सुनहरे रंग का बीस पैसे का निकल का सिक्का ढाला गया। इस सिक्के पर कमल का फूल छपा था। यह सिक्का 1971 में बंद हो गया। दूसरा सिक्का बीस पैसे का गंाधी छाप सरकार ने जारी किया। सरकार के निर्णय पर रिर्जव बैंक ने दस हजार, पांच हजार एवं एक हजार के नोट भी जारी किये। जिन्हे अचानक बंद कर दिया गया एवं बैंकों में जमा कराने या उन्हे छुट्टे कराने के लिये बैंकों को पूरा ब्यौरा देने को कहा एक-एक, दो-दो, नोट लोगों से उनके खातों मंे जमा कराए और अधिक नोट छिपा कर रखे गये। काफी कालाधन दब गया।
डालर की कहानी-
8 अगस्त 1862 को पहला डालर छपा। डालर में 75 प्रतिषत काॅटन, 25 प्रतिषत लिनन होता हैं। नोट छापने से पहले पेपर को आठ हजार बार फाॅल्ड करते हैं। डाॅलर पर महिला के रूप में वांषिगटन की पत्नी मारिया की फोटो एक व दो डाॅलर पर छपी थी। कुल नोटों के 45 प्रतिषत नोट एक डालर के होते है। जिस पर जार्ज वांषिगटन का चित्र छपा होता है। एक लाख का डालर 1934 में छपा था। जिसपर राष्ट्रपति विलसन का चित्र था। इसे 25 दिन बाद बंद कर दिया गया। 100 डालर के नोट इस समय 9 अरब है। जिसमें से छह अरब डालर विदेषों में प्रचलित है। इसमें बेंजामिन का चित्र है। कहने का तात्पर्य लगभग उपरोक्त सभी सिक्के व नोट इस संग्राहलय मंे उपलब्ध है।
इतिहास से रिष्ता
सिक्कों को इस तरतीब से सजाकर रखा गया है कि सिक्के अलग अलग खांचों में लगे हैं। ये सिक्के तत्कालीन आर्थिक, राजनीतिक, धार्मिक व सामाजिक व्यवस्थाओं का दर्पण भी है। गट्टाणी ने पूर्व में सिक्कों का बहुत बड़ा संग्रहालय असम राज्य के जोराहट में ऐतिहासिक जिम खाना क्लब में गोल्फकोर्स के पास विक्टोरियाकालीन फार्म हाउस जोरहाट में अपनी माता श्रीमती जोरादेवी के नाम से जोरा विला में भी स्थापित कर रखा है। जोरा विला में ब्रिटिष व रजवाड़ों के समय के दुर्लभ चित्र, घड़ी, कैमरे, वाद्य यंत्रादि अनेक वस्तुओं को भी सम्मिलित किया गया है। जिसमें पुरानी सभी प्रकार की कारें भी दर्षकों के आकर्षक का केन्द्र बिन्दू है। विष्वस्तरीय ख्याति प्राप्त बनारस हिन्दू विष्वविद्यालय, वाराणसी, दिल्ली कोईन सोसाईटी, कलकत्ता म्युमिसटेक सोसयटी के आप आजीवन सदस्य हैं। आपके सिक्कों में राजस्थान के सभी रजवाड़ों के साथ साथ भारत के सभी शासकों के सिक्के भी शामिल है। ब्रिटिष काल के लगभग सभी सिक्के और अन्य विदेषों के सिक्के तथा प्रत्येक राज्य का इतिहास, सिक्के का उस समय का मूल्य, किसने जारी किया, किस धातु का है आदि जानकारी भी शो-केषो के साथ लगा रखी है। राजस्थान विष्वविद्यालय, जयपुर ने 5 वर्ष पूर्व एम.ए. म्यूजियोलाॅजी में आरंभ की थी। कतिपय सरकारी म्यूजियम उनके अध्ययन- अध्यापन के क्षेत्र रहे हंै। अनेक छात्र छात्राऐं सिक्कों के बारे में, प्राचीन मुद्रा के बारे में शोध भी करते हंै, किन्तु मात्र पुरानी पुस्तकों से इधर उधर सामग्री का संकलन करते हैं। ऐसे शोधार्थियों के लिये सिक्कों का संकलन बहुत ही उपयोगी सिद्ध होगा।
शोधार्थियों को यदि शोध के लिये नोखा आकर रूकना पड़े, तो उनके लिये विश्राम घर की भी सुविधा इस संग्रहालय में उपलब्ध है। गट्टाणी चाहते हैं कि राजस्थानी पुरानी, साहित्य, संस्कृति, कला, ग्रामीण औजारों एवं उपकरणों का एक विषाल म्यूजियम विकसित करें, ताकि नोखा में आने वालों के लिये एक टयूरिज्म पैलेस की कमी ना रहे। गट्टाणी ने नोखा स्थित संग्रहालय के विकास को गति देने के लिये उपयुक्त संग्रहालय भवन का निर्माण करा लिया है और वह दिन दूर नही, जब इस संग्रहालय का भव्य रूप भी देखने को मिलेगा।धार्मिक पर्यटन स्थल देषनोक से मात्र 30 किमी दूर नोखा का यह आकर्षण विदेषी व देषी सैलानिया के लिये एक आकर्षक पर्यटन स्थल का रूप लेने वाला हंै। यहां वर्तमान मंे संग्रहालय नियमित रूप से खुलता हंै तथा अनेक षिक्षक, छात्र, पत्रकार यहां आकर ज्ञानार्जन करते हैं। आषा की जानी चाहिए कि विदेषी सैलानियों के लिये राजस्थान का पर्यटन निगम एवं विभाग नोखा के इस संग्रहालय को भी चिन्हित करेगें।
सूर्य सदन चम्पाखेड़ी
वाया-रेण(नागौर) 341514,
मो. 9610299299
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